राम राज

रामलला हुए विराजमान। अयोध्या में भव्य-दिव्य राम मंदिर के निर्माण से राम राज्य की संकल्पना को साकार करता नया भारत विकास और विरासत की साझा शक्ति से सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और ऐतिहासिक गौरव को कर रहा है पुनर्स्थापित

 

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लता मंगेशकर चौक , अयोघ्या

 

भारत रत्न लता मंगेशकर

 

पूरे विश्व को जिन्होंने अपने दिव्य स्वरों से किया अभिभूत

 

मराठी और कोंकणी संगीतकार पंडित दीनानाथ मंगेशकर के घर 28 सितंबर, 1929 में जन्मीं लता मंगेशकर मां सरस्वती की एक ऐसी ही साधिका थीं जिन्होंने पूरे विश्व को अपने दिव्य स्वर से अभिभूत

कर दिया। साधना लता मंगेशकर ने की वरदान हम सबको मिला। अयोध्या में लता मंगेशकर चौक पर मां सरस्वती की विशाल वीणा स्थापित की गई है जो संगीत की साधना का प्रतीक बनेगी। चौक परिसर

में सरोवर के प्रवाहमय जल में संगमरमर से बने 92 श्वेत कमल  लता मंगेशकर की जीवन अवधि को दर्शा रहे हैं…...

 

a              पीएम मोदी ने लता मंगेशकर द्वारा गाया श्रीराम रक्षा का श्लोक ‘माता रामो मात्पिता रामचन्द्र:’ अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर जारी किया, जो लता जी द्वारा रिकॉर्ड किया गया आखिरी श्लोक था, श्लोक इस लिंक

https://www.youtube.com/watch?v=M3h-p8WOTJM पर सुनिए।

a              लता मंगेशकर का गाया ‘मन की अयोध्या तब तक सूनी, जब तक राम ना आए’ मानस का मंत्र ‘श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन, हरण भव भय दारुणम्’ हो या मीराबाई का ‘पायो जी मैंने राम रतन धन पायो’ अनगिनत भजन हैं।

aबापू का प्रिय भजन ‘वैष्णव जन’ हो या फिर जन-जन के मन में उतर चुका ‘तुम आशा विश्वास हमारे राम’ ऐसे मधुर गीत लता मंगेशकर की आवाज में सुनकर अनेकों देशवासियों ने भगवान राम के दर्शन किए हैं।

 

लता दीदी भगवान श्री राम की एक सच्ची भक्त थीं। मैं मानता हूं कि अयोध्या का लता मंगेशकर चौक और उनसे जुड़ी ऐसी सभी स्मृतियां हमें देश के प्रति कर्तव्य-बोध का भी अहसास करवाएंगी।

- नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री

 

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अंदर के पन्नों पर...

 

सांस्कृतिक पुनर्जागरण का साक्षी अयोध्या

 

आवरण कथा

 

इस विशेष अंक में आइए जानते हैं कैसे अमृत काल में विकसित भारत का सपना साकार करने के लिए राष्ट्र अपनी सांस्कृतिक विरासत और गौरव को दे रहा है नई भव्यता...  4-43

 

राम राज में ‘बिहार के जननायक’ को भारत रत्न

कर्पूरी ठाकुर जी के भारतीय समाज और राजनीति में अविस्मरणीय छाप पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्लॉग पर साझा किए अपने विचार   44-46

 

केंद्रीय मंत्रिमंडल के निर्णय : ‘पृथ्वी विज्ञान (पृथ्वी)’ योजना स्वीकृत

भारत और यूनाइटेड स्‍टेट एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट समझौता ज्ञापन को मंजूरी   47

 

आईडिया और इमैजिनेशन का वट वृक्ष ‘वाइब्रेंट गुजरात’

पीएम मोदी ने 3 दिवसीय 10वें वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल समिट का किया उद्घाटन…   50-51

 

विकसित होते भारत को गति देती रेल

पहली सेमी हाई स्पीड ट्रेन ‘वंदे भारत’ के चार वर्ष   52-53

 

व्यक्तित्व - राजकुमारी अमृत कौर

एम्स की शिल्पकार राजकुमारी अमृत कौर  60

 

सबसे लंबा पुल अटल सेतु राष्ट्र को समर्पित

महाराष्ट्र को अटल सेतु सहित 30,500 करोड़ रुपये से अधिक की सौगातें  48-49

 

देश की यात्रा बनी

विकसित भारत संकल्प यात्रा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विकसित भारत संकल्प यात्रा के लाभार्थियों से की बातचीत  54-55

 

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संपादक की कलम से...

 

अयोध्या में प्रगति और परंपरा का राष्ट्रीय उत्सव…

 

सादर नमस्कार।

जीवन के कुछ क्षण, ईश्वरीय आशीर्वाद की वजह से ही यथार्थ में बदलते हैं। वर्ष 2024 की 22 जनवरी, उसी यथार्थ का ऐतिहासिक पवित्र पल बन गया है। इस दिन अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का समारोह सभी भारतीयों और दुनिया भर में फैले रामभक्तों के लिए पवित्र अवसर बन गया है। चहुंओर प्रभु श्रीराम की भक्ति का अद्भुत वातावरण भव्य-दिव्य-नव्य अयोध्या का साक्षी बना है। जिस स्वप्न को अनेक पीढ़ियों ने वर्षों तक एक संकल्प की तरह अपने हृदय में संजोया, उसकी सिद्धि ऐसे समय में हुई है जब राष्ट्र विकसित भारत के संकल्प के विराट लक्ष्य के लिए संकल्प शक्ति के साथ चल पड़ा है।

महात्मा गांधी कहते थे कि रामराज्य का विचार ही, सच्चे लोकतंत्र का विचार है। गांधी जी के ऐसा कहने के पीछे वर्षों का उनका अध्ययन था, उनका दर्शन था। रामराज्य, अर्थात् एक ऐसा लोकतंत्र जहां हर नागरिक की आवाज सुनी जाती थी और उसे उचित सम्मान मिलता था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार पहले दिन से ही प्रयास कर रही है कि श्रीराम के आदर्शों पर चलते हुए देश में सुशासन हो, देश में ईमानदारी का राज हो। यह सही अर्थों में रामराज्य ही है जिसने सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास की प्रेरणा दी है। किसी भी राष्ट्र के लिए अपने इतिहास, अपनी विरासत, अपनी संस्कृति, अपनी उज्ज्वल परंपराओं पर गर्व, उसके विकास को नई पहचान देता है। हम समग्र विकास की ओर कदम तभी बढ़ा पाते हैं, जब देश अपनी सामाजिक सच्चाईयों और सांस्कृतिक पहचान का समावेश करता है। इसीलिए, आज भारत में तीर्थों का विकास भी हो रहा है और आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर में नए रिकॉर्ड भी बना रहा है।

सांस्कृतिक विरासत की समृद्धि राष्ट्र के विकास की प्राण वायु बनी है क्योंकि सांस्कृतिक वैभव किसी भी राष्ट्र की सफलता का परिचायक होता है। विरासत की

भव्यता-दिव्यता नए भारत की पहचान बनी है और अमृत काल का संकल्प जन-जन के लिए आस्था का कालखंड बन रहा है। सही अर्थों में, विकास-विरासत की यही साझा ताकत, भारत को 21वीं सदी में सबसे आगे ले जाएगी। सांस्कृतिक वैभव को लौटाने की प्रधानमंत्री मोदी की विशेष पहल और उसके गौरव की पुनर्स्थापना किस तरह विकसित भारत का आधार बनी है, यही इस बार के अंक की हमारी आवरण कथा बनी है।

सुधी पाठकों, देश के कण-कण में, प्रत्येक मन में राम नाम की गूंज है। पूरा देश राममय है, राम जी की भक्ति में सराबोर है। प्रभु श्रीराम का जीवन विस्तार, उनकी प्रेरणा, आस्था...भक्ति के दायरे से कहीं ज्यादा है। प्रभु राम, सामाजिक जीवन में सुशासन के ऐसे प्रतीक हैं जो सभी के लिए बहुत बड़ी प्रेरणा हैं।

आइए प्रभु श्रीराम जैसी संकल्पशक्ति और आदर्शों को आत्मसात करते हुए विकसित भारत के लक्ष्य की ओर अग्रसर हों...

(मनीष देसाई)

 

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आपकी बात...

 

डिजिटल सुविधा ने लेन-देन को बना दिया आसान

मोदी सरकार ने डिजिटल सुविधा प्रदान कर देश की जनता के लिए लेन-देन कार्यों को बहुत ही आसान बना दिया। पहले बैंक या एटीएम पर लाइन लगानी पड़ती थी। पीएम मोदी ने जब से डिजिटल इंडिया की शुरुआत की तब से भुगतान के लिए लगने वाली लाइन खत्म हो गई है। आज ठेला-खोमचे वाले से लेकर दिहाड़ी मजदूरी करने वाले लोग पीएम मोदी को धन्यवाद दे रहे हैं और कह रहे हैं डिजिटल इंडिया बना कर उन्होंने जीवन को और भी सुगम बना दिया।

सत्येन्द्र सिंह गहलोत | [email protected]

 

योजनाओं के बारे में पत्रिका में

होती है विस्तृत जानकारी

मैं लगभग एक साल से पाक्षिक पत्रिका न्यू इंडिया समाचार का पाठक हूं। पत्रिका में भारत सरकार के विभिन्न विभागों द्वारा चलाई जा रही योजनाओं के विषय में प्रकाशित आलेख से विस्तृत जानकारी मिलती है।

अरुण कुमार

[email protected]

 

पत्रिका के माध्यम से नई जानकारी और योजनाओं से हुई रूबरू

मैं प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही हूं। न्यू इंडिया समाचार पत्रिका के दिसंबर का अंक मेरी एक मित्र ने मुझे पढ़ने को दिया। पत्रिका ने मुझे नवीन जानकारी और योजनाओं से परिचय कराया। पत्रिका मुझे बहुत ज्ञानवर्धक लगी। मैं आगे के सभी अंक भी पढ़ना चाहती हूं।

नेहा सिंह | [email protected]

 

समसामयिक घटनाक्रम की जानकारी देने वाली पत्रिका

मैं न्यू इंडिया समाचार पत्रिका का नियमित पाठक हूं। यह देश विदेश की समसामयिक घटनाक्रम की जानकारी देने वाली ज्ञानवर्धक पत्रिका है।

राजकुमार सिंह राजपूत

[email protected]

 

नियमित पढ़ना चाहता हूं न्यू इंडिया समाचार पत्रिका

मेरा नाम कुलजम शर्मा है। मैं पश्चिम बंगाल का निवासी हूं। मैं अपने दादाजी के यहां था जहां मुझे न्यू इंडिया समाचार पढ़ने को मिला। मुझे यह बहुत ही अच्छा लगा। मैं न्यू इंडिया समाचार पत्रिका नियमित रूप से पढ़ना चाहता हूं।

[email protected]

 

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आवरण कथा

विकास और विरासत

 

सांस्कृतिक पुनर्जागरण का साक्षी अयोध्या

 

राष्ट्रीय एकता हो या फिर नागरिक कर्तव्य बोध, सांस्कृतिक विरासत कड़ी का काम करती है। यही वो मजबूत कड़ी है जो देश को ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को भी भारत से जोड़ती है। इसी सोच से सांस्कृतिक विरासत पर गर्व करता भारत अपने अद्भुत गौरवशाली इतिहास के साथ वर्तमान में नए आयाम जोड़कर विकास और विरासत को आत्मसात करते हुए सुनहरे भविष्य की पटकथा लिख रहा है। भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के कृत संकल्प में सांस्कृतिक विरासत एक महत्वपूर्ण अध्याय है। इसी कड़ी में 22 जनवरी 2024 को भगवान श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या में श्रीरामलला सरकार की प्राण प्रतिष्ठा बनी भारत की महान सांस्कृतिक विरासत का प्रतिबिंब, जो सदियों के बाद हुआ है साकार। यह प्रत्येक भारतीय की चेतना में अंकित होकर युगों-युगों तक मानवता का करता रहेगा मार्गदर्शन और प्रत्येक भारतीय में भक्ति, सेवा और समर्पण के भाव बनेंगे समर्थ, सक्षम, भव्य-दिव्य-नव्य भारत का आधार…।

 

इस विशेष अंक में आइए जानते हैं कैसे अमृतकाल में विकसित भारत का सपना साकार करने के लिए राष्ट्र, विकास और विरासत के साथ देव से देश और राम से राष्ट्र की चेतना का विस्तार करते हुए अपनी सांस्कृतिक गौरव को दे रहा है नई भव्यता...

 

धन्य है नए भारत की अमृत पीढ़ी जो सदियों का इंतजार बीते कुछ वर्षों के अथक प्रयास से पूर्ण होते हुए देख रही है। अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य राम मंदिर देख रही है। सांस्कृतिक विरासत से जुड़े स्थल हों या धरोहर, सांस्कृतिक पुनर्जागरण के साक्षी बन रहे हैं। एक दौर था, जब देश में उस समय की पीढ़ी ने विदेशी आक्रांताओं द्वारा सांस्कृतिक विरासत से जुड़े धार्मिक स्थलों को टूटते देखा था, आजादी के बाद भी अनदेखी को अपनी आंखों के सामने देखा था। यह स्थिति तब थी जब किसी भी राष्ट्र की सफलता का परिचायक उसका सांस्कृतिक वैभव होता है।

इस 22 जनवरी को अयोध्या का दृश्य कुछ वैसा ही था जैसा 14 वर्ष के वनवास के बाद श्रीराम की अयोध्या वापसी के समय मनाई गई दीपावली। वर्ष 2024 के पहले महीने में ही दीपावली जैसा दृश्य विकास और विरासत के समागम का अद्भुत उदाहरण बन गया है, जिसे सदियों तक याद किया जाएगा क्योंकि आजादी के 7 दशक बाद समय का चक्र एक बार फिर घूमा है। देश अब लाल किले से ‘गुलामी की मानसिकता से मुक्ति’ और अपनी ‘विरासत पर गर्व’ की घोषणा कर रहा है जो काम सोमनाथ से शुरू हुआ था, वह अब एक अभियान बन गया है। आज अयोध्या में

नव्य-भव्य-दिव्य राम मंदिर हर भारतीय की चेतना में अंकित हुआ है तो सांस्कृतिक विरासत की समृद्धि का प्रतिबिंब बन गया है। काशी में विश्वनाथ धाम की भव्यता भारत के अविनाशी वैभव की गाथा गा रही है। आज महाकाल महालोक अमरता का प्रमाण दे रहा है। आज केदारनाथ धाम भी विकास की नई ऊंचाइयों को छू रहा है। बुद्ध सर्किट का विकास कर भारत एक बार फिर दुनिया को बुद्ध की तपोभूमि पर आमंत्रित कर रहा है। देश में राम सर्किट के विकास के लिए भी तेजी से काम हो रहा है। सही अर्थों में अब सांस्कृतिक विरासत की समृद्धि राष्ट्र की प्राण वायु बनी है। दुनिया में कोई भी देश हो, अगर उसे विकास की नई ऊंचाई पर पहुंचना है तो उसे अपनी विरासत को संभालना ही होगा। भारत की सांस्कृतिक विरासत, हमें प्रेरणा देती है, हमें सही मार्ग दिखाती है। इसलिए आज का भारत, पुरातन और नूतन दोनों को आत्मसात करते हुए आगे बढ़ रहा है।

21वीं सदी के विकसित भारत के निर्माण के दो प्रमुख स्तंभ हैं। पहला, अपनी विरासत पर गर्व और दूसरा, विकास के लिए हर संभवप्रयास। इसी सोच का परिणाम है कि आज अयोध्या के विकास के लिए हजारों करोड़ों रुपये की नई योजनाएं साकार हुई हैं। सड़कों का विकास हुआ है, चौराहों और घाटों का सौंदर्यीकरण हुआ है। नए इंफ्रास्ट्रक्चर बन रहे हैं। यानी अयोध्या का विकास नए आयाम छू रहा है। अयोध्या रेलवे स्टेशन के साथ साथ वर्ल्ड क्लास एयरपोर्ट का निर्माण भी हो चुका है। कनेक्टिविटी और अंतरराष्ट्रीय पर्यटन का लाभ इस पूरे क्षेत्र को मिलेगा। अयोध्या के विकास के साथ-साथ रामायण सर्किट के विकास पर भी काम चल रहा है। यानी, अयोध्या से जो विकास अभियान शुरू हुआ, उसका विस्तार आसपास के पूरे क्षेत्र में होगा। इस सांस्कृतिक विकास के कई सामाजिक और अंतरराष्ट्रीय आयाम भी हैं। श्रृंगवेरपुर धाम में निषादराज पार्क का निर्माण, भगवान राम और निषादराज की 51 फीट ऊंची कांस्य प्रतिमा उस सर्वसमावेशी संदेश को भी जन-जन तक पहुंचाएगी जो समानता और समरसता के लिए संकल्पबद्ध करता है। इसी तरह, अयोध्या में क्वीन-हो मेमोरियल पार्क का निर्माण भारत और दक्षिण कोरिया अंतरराष्ट्रीय संबंधों को प्रगाढ़ बनाने के लिए, दोनों देशों के सांस्कृतिक रिश्तों को मजबूत करने का एक माध्यम बनेगा। इस विकास से, पर्यटन की संभावनाओं को पंख मिले हैं। सरकार ने जो रामायण एक्सप्रेस ट्रेन चलाई है वो आध्यात्मिक पर्यटन की दिशा में एक बेहतरीन शुरुआत है। आज देश में चारधाम प्रोजेक्ट हो, बुद्ध सर्किट हो या प्रसाद योजना के तहत चल रहे विकास कार्य हों, हमारा ये सांस्कृतिक उत्कर्ष, नए भारत के समग्र उत्थान का श्रीगणेश है।

पुनर्स्थापित हो रहा सांस्कृतिक गौरव

बीते 10 वर्षों में भारतीय सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और ऐतिहासिक गौरव पुनर्स्थापित हुआ है। सांस्कृतिक विरासत को सहेजने और समेटने में भारत ने एक अभूतपूर्व उपलब्धि हासिल की है। भारतीय संस्कृति को एक बड़ी अंतरराष्ट्रीय पहचान 2014 में उस दिन मिली, जिस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रस्ताव को दुनिया ने स्वीकार कर अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को मान्यता दी। आजादी के बाद लगभग 7 दशक तक औपनिवेशिक मानसिकता गाहे-ब-गाहे दिखती ही थी, इसलिए सांस्कृतिक विरासत को सहेजने के लिए जो आवश्यक कदम उठाने थे, वह नहीं उठाए गए। औपनिवेशिक काल में विदेशी आक्रांताओं ने भारतीय संस्कृति को काफी नुकसान पहुंचाया। भारत से चोरी या लूट कर ले जाई गईं ऐतिहासिक संपदाओं और धरोहरों को फिर भारत की धरा पर वापस लाया जा रहा है। 2014 से अब तक 344 से ज्यादा धरोहरें भारत वापस लाई गई हैं। 2014 में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री आजाद भारत में जन्म लेने वाले पहले प्रधानमंत्री बने। पूर्णत: भारतीय मानसिकता से ओत प्रोत सरकार के नेतृत्व के रूप में प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय संस्कृति का पुरोधा बनकर न केवल संस्कृति और परंपरा का संरक्षण किया है, बल्कि इसके पुनर्जागरण के लिए अभूतपूर्व काम किए हैं। इसका परिणाम हुआ है कि वैश्विक पटल पर हिमालय जितनी ऊंची और समुद्र सी गहराई की तरह भारतीय संस्कृति पुनर्स्थापित हुई है।

जब किसी देश की आर्थिक शक्ति के साथ सांस्कृतिक-ऐतिहासिक विरासत को भी स्वीकारा जाता है, तब सही अर्थों में वैश्विक पटल पर उस देश को सम्मान और पहचान मिलती है। दुनिया में ज्ञान-विज्ञान और आध्यात्मिक केंद्र के रूप में भारत की पहचान थी लेकिन गुलामी के लंबे कालखंड के दौरान भारत की प्रासंगिकता कम हो गई। गुलामी के कालखंड की मानसिकता से पश्चिमी संस्कृति-सभ्यता को श्रेष्ठ मानने लगे थे। ऐसे में नए भारत के धर्म युग के नायक के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विकास और विरासत की सोच से भारतीय संस्कृति को नए पुनर्जागरण के दौर में पहुंचाया। आज देश की नई पीढ़ी में भारतीय संस्कृति के प्रति सम्मान बढ़ा है और भारतीयता की अनुभूति से गौरवान्वित हो रहे हैं।

आस्था और आर्थिक संगमम का नया युग

भारत प्राचीन काल से ही इस दुनिया में विज्ञान और तकनीक से जुड़े ज्ञान का केंद्र माना जाता रहा है। बीच में एक दौर ऐसा भी आया जब विदेशी शासकों और औपनिवेशिक युग ने कई प्रमुख संस्थानों को इतना नुकसान पहुंचाया कि उन्हें आज तक फिर जिंदा नहीं किया जा सका। लेकिन ‘देश, काल, परिस्थिति’ के महत्व का यह वर्णन प्राचीन पवित्र ग्रंथों में रहा है और बीते 10 वर्षों में हम धर्म के प्रति समग्र दृष्टिकोण में बड़े और स्पष्ट बदलाव होते देख रहे हैं। भू-राजनीति से लेकर हमारी विदेश नीति तक, ‘भारतीय बोध’ के एकीकरण और ‘हम’ पर जोर ने भारत को देखने वाले दुनिया के नजरिये पर जबरदस्त प्रभाव डाला है। भारत के संविधान की मूल प्रति में भी मौलिक अधिकारों के खंड पर भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण जी का विजय के बाद अयोध्या लौटने का जो चित्र बना हुआ है, वह इस बात का प्रमाण है कि मौलिक अधिकारों के प्रेरणा स्रोत भगवान श्रीराम हैं। भगवान श्रीराम मंदिर के पुनर्निर्माण का प्रयास 500 वर्षों से चल रहा था। प्रधानमंत्री मोदी के मार्गदर्शन में राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर निर्माण के साथ काशी की छवि बदल गई है। बनारस आज एक नई काशी के रूप में दिखने लगा है। काशी-तमिल संगमम उत्सव की तरह मनाया गया। दुनिया भर से लोग भारत और उसकी आध्यात्मिक राजधानी काशी की सांस्कृतिक गहराई में डूब कर खुद को भाग्यशाली मानते हैं। इससे बनारस और आसपास के क्षेत्र की आर्थिक प्रगति को भी नए पंख मिल गए हैं। सोमनाथ मंदिर, उज्जैन में महाकाल लोक, गुवाहटी में कामाख्या मंदिर, ओडिशा में जगन्नाथ मंदिर, चारधाम का कायाकल्प, भारत को सांस्कृतिक-आध्यात्मिक रूप से विश्व पटल पर ले जाने में इससे सफलता मिली है। साथ ही, गुजरात के मेहसाणा में चालुक्य काल में बनाए गए सूर्य मंदिर का पुनरुद्धार हुआ है। पुणे में तुकाराम महाराज मंदिर, गुजरात में कालिका माता मंदिर जैसे अनेक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक केंद्रों के पुनरुद्धार पर सरकार ने काम किया है। आस्था के ये केंद्र सिर्फ एक ढांचा नहीं बल्कि भारत के लिए प्राणशक्ति है, प्राणवायु की तरह हैं। यह हमारे लिए ऐसे शक्तिपुंज हैं जो कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी हमें जीवंत बनाए रखते हैं। इसी सोच से बीते कुछ वर्षों में एक दीर्घकालिक दृष्टिकोण के साथ पुनरोद्धार की पहल हुई है।

देश के विभाजन के समय करतारपुर साहिब सीमा के उस पार रह गए थे, वहीं आज पवित्र गुरुद्वारा करतारपुर साहिब का द्वार खुला है जिससे करोड़ों सिखों की आस्था को पूरा किया गया है। अपने धर्म की रक्षा करने के लिए सिखों के 10वें गुरू श्री गुरु गोविंद सिंह के बेटों ने खुद को दीवार में चुनवाना स्वीकार किया था, उन वीर बालकों को स्थायी रूप से सम्मान देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत की। हाल ही में बनी संसद की नई इमारत के निर्माण और इसकी शुरुआत ने भी भारत के स्वर्ण युग की यादें ताजा कर दी हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने 28 मई को जब नई संसद में चोल राजवंश से जुड़े ‘सेन्गोल’ (राजदंड) की स्थापना की तो यह देश के लिए जड़ों से जोड़ने वाला संजोया गया क्षण रहा।

 सांस्कृतिक पुनरुद्धार के दौर में देश सभी धर्म के आस्था केंद्रों के पुनरुद्धार पर काम कर रहा है। हिमालयी संस्कृति और बौद्ध संस्कृति का संरक्षण किया जा रहा है। विदेशों में भी भारतीय मंदिरों के पुनरुद्धार और नए मंदिरों का निर्माण भारत की संस्कृति के एक प्रतीक के रूप में उभरा है। गंगा नदी के पुनरुद्धार के लिए मिशन मोड में नमामि गंगे अभियान चलाया गया। गंगा केवल धार्मिक ही नहीं, सांस्कृतिक रूप से भी महत्व रखती है। गंगा किनारे विकसित हुए सांस्कृतिक केंद्रों को विश्व पटल पर लाने, ज्ञान गंगा और अर्थ गंगा के रूप में गंगा को स्थापित करने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं। संस्कृति और सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ाव के कारण बीते 10 वर्षों में प्रधानमंत्री मोदी ने स्वयं अनेक बार सीमावर्ती क्षेत्रों, केदारनाथ धाम, बद्रीनाथ धाम एवं अन्य संप्रदायों के धार्मिक स्थलों की यात्रा की और भारत की विविध संस्कृतियों के पुनरुद्धार की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति के लिए कदम उठाए। 2014 से अब तक भारत की कई सांस्कृतिक धरोहरों को यूनेस्को से मान्यता मिली है। यह प्रमाणन भारत की संस्कृति को विश्व भर में पहचान, भारतीय सांस्कृतिक विरासतों के पुनरुद्धार की ओर एक महत्वपूर्ण कदम है। आज भारत नए आर्थिक-सामरिक शक्ति केंद्र के साथ-साथ सांस्कृतिक विरासत को सहेजते हुए

ज्ञान-विज्ञान और संस्कृति के केंद्र के रूप में पूरे विश्व में अपनी विशिष्ट पहचान स्थापित कर रहा है।

विकास के नए अवसर, नई पहचान

दुनिया में कोई भी देश हो, अगर उसे विकास की नई ऊंचाई पर पहुंचना है तो उसे अपनी विरासत को संभालना ही होगा। हमारी विरासत, हमें प्रेरणा देती है, हमें सही मार्ग दिखाती है। इसलिए आज का भारत, पुरातन और नूतन दोनों को आत्मसात करते हुए आगे बढ़ रहा है। एक समय था जब इसी अयोध्या में श्रीराम लला टेंट में विराजमान थे। आज पक्का घर सिर्फ राम लला को ही नहीं बल्कि पक्का घर देश के चार करोड़ से ज्यादा गरीब परिवारों को भी मिला है। आज भारत अपने तीर्थों को भी संवार रहा है तो वहीं डिजिटल तकनीक की दुनिया में भी भारत छाया हुआ है। आज भारत काशी विश्वनाथ धाम के पुनर्निमाण के साथ ही देश में 30 हजार से ज्यादा पंचायत भवन भी बनवा रहा है। आज देश में सिर्फ केदारनाथ धाम का पुनरुद्धार ही नहीं हुआ है बल्कि 315 से ज्यादा नए मेडिकल कॉलेज भी बने हैं। आज देश में महाकाल महालोक का निर्माण ही नहीं हुआ है बल्कि हर घर जल पहुंचाने के लिए पानी की 2 लाख से ज्यादा टंकियां भी बनवाई हैं। चांद, सूरज और समुद्र की गहराइयों को भी नाप रहे हैं तो अपनी पौराणिक मूर्तियों को भी रिकॉर्ड संख्या में भारत वापस ला रहे हैं। आज के भारत की प्रकृति, सोच, दर्शन अयोध्या में स्पष्ट दिखता है। 22 जनवरी 2024 को देश-दुनिया ने अयोध्या में प्रगति और परंपरा का उत्सव देखा। विकास और विरासत की भव्यता-दिव्यता के दर्शन किए। यही भारत के विकास और विरासत की साझा ताकत है जो भारत को 21वीं सदी में सबसे आगे ले जाएगी।

अमृत काल और श्रीराम जैसी संकल्प शक्ति

आजादी के इस अमृत काल में भगवान श्रीराम जैसी संकल्प शक्ति ही देश को नई ऊंचाई पर ले जाएगी। भागवान राम ने अपने वचन में, अपने विचारों में जिन मूल्यों को गढ़ा, वही सबका साथ-सबका विकास की प्रेरणा है और सबका विश्वास-सबका प्रयास का आधार है। भगवान राम किसी को पीछे नहीं छोड़ते, कर्तव्य भावना से मुख नहीं मोड़ते। अगले 25 वर्षों में विकसित भारत की आकांक्षा लिए आगे बढ़ रहे हिंदुस्तानियों के लिए, श्रीराम के आदर्श, उस प्रकाश स्तंभ की तरह हैं जो कठिन से कठिन लक्ष्यों को हासिल करने का हौसला देंगे। बीते 10 वर्षों में देश ने हीन भावना की बेड़ियों को तोड़ा है और भारत के आस्था के केंद्रों के विकास की एक समग्र सोच को सामने रखा है। हमारे धर्मग्रंथों में कहा गया है- “रामो विग्रहवान् धर्मः”॥ अर्थात्, राम साक्षात् धर्म के, यानी कर्तव्य के सजीव स्वरूप हैं। भगवान राम जब जिस भूमिका में रहे, उन्होंने कर्तव्यों पर सबसे ज्यादा बल दिया। वो जब राजकुमार थे, तो ऋषियों की, उनके आश्रमों और गुरुकुलों की सुरक्षा का कर्तव्य निभाया। राज्याभिषेक के समय पर श्रीराम ने एक आज्ञाकारी बेटे का कर्तव्य निभाया। उन्होंने पिता और परिवार के वचनों को प्राथमिकता देते हुए राज्य के त्याग को, वन जाने को अपना कर्तव्य समझकर स्वीकार किया। वो वन में होते हैं, तो वनवासियों को गले लगाते हैं। आश्रमों में जाते हैं तो मां सबरी का आशीर्वाद लेते हैं। वो सबको साथ लेकर लंका पर विजय प्राप्त करते हैं और जब सिंहासन पर बैठते हैं तो वन के वही सब साथी राम के साथ खड़े होते हैं। क्योंकि राम किसी को पीछे नहीं छोड़ते। राम कर्तव्यभावना से मुख नहीं मोड़ते। इसीलिए, राम, भारत की उस भावना के प्रतीक हैं जो मानती है कि हमारे अधिकार हमारे कर्तव्यों से स्वयं सिद्ध हो जाते हैं। इसलिए हमें कर्तव्यों के प्रति समर्पित होने की जरूरत है।

आजादी के अमृतकाल में देश ने अपनी विरासत पर गर्व और गुलामी की मानसिकता से मुक्ति का आह्वान किया है। यह प्रेरणा भी प्रभु श्रीराम से मिलती है। उन्होंने कहा था- जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी। यानी, वो स्वर्णमयी लंका के सामने भी हीनभावना में नहीं आए बल्कि उन्होंने कहा कि मां और मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है। इसी आत्मविश्वास के साथ जब वो अयोध्या में लौटकर आते हैं तब अयोध्या के बारे में कहा जाता है- “नव ग्रह निकर अनीक बनाई। जनु घेरी अमरावति आई”॥ यानी, अयोध्या की तुलना स्वर्ग से की गई है। इसीलिए जब राष्ट्र निर्माण का संकल्प होता है, नागरिकों में देश के लिए सेवा भाव होता है तभी राष्ट्र विकास की असीम ऊंचाइयों को छूता है। सही अर्थों में भगवान श्रीराम जैसी संकल्प शक्ति ही बीते कुछ वर्षों में विकसित भारत का आधार बना है।

दुनिया में भारत की संस्कृति

भारत में प्राचीन विरासत का बोध फिर लौट रहा है। इसके पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे ताकतवर नेता हैं जो लोकतंत्र के पावन मंदिर में इन प्राचीन अनुष्ठानों को कर देशवासियों में गर्व का भाव भर रहे हैं। जी-20 शिखर सम्मेलन की कामयाबी भी बता रही है कि भारत की संस्कृति, विविधता और सभ्यता वैश्विक क्षेत्र में फिर से नया जीवन ले रही है। इस शिखर सम्मेलन में आए विदेशी मेहमानों को प्रधानमंत्री मोदी ने जो गिफ्ट दिए, वे भी भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का परिचायक हैं। इन उपहारों को चुनने की सोच भी सराहनीय है। मेहमानों को जो गिफ्ट दिए गए, उनमें खादी स्कार्फ, कन्नौज का जिगराना इत्र, कश्मीरी पश्मीना शॉल, अरकू कॉफी, दार्जिलिंग और नीलगिरि की चाय और पीतल की पट्टी वाले शीशम की लकड़ी से बने संदूक शामिल रहे। ये सभी भारत के कुदरती सौंदर्य और पारंपरिक शिल्प को दिखाते हैं। अपनी विदेश यात्राओं में भी प्रधानमंत्री मोदी राष्ट्र प्रमुखों को ऐसे ही उपहार देते रहे हैं। जोहानिसबर्ग में हुई ब्रिक्स समिट में पीएम मोदी ने दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति को तेलंगाना की मशहूर सुराही गिफ्ट की तो उनकी पत्नी को नगा संस्कृति की शॉल दी। ब्राजील के राष्ट्रपति को गोंड पेंटिंग गिफ्ट की। अमेरिकी राष्ट्रपति की पत्नी जिल बाइडन को वह कश्मीरी बक्से में हीरा गिफ्ट कर चुके हैं। इस अनूठी उपहार परंपरा ने भारतीय कला को दुनियाभर में मशहूर करने का रास्ता दिखाया है। भारत आने वाले विदेशी मेहमानों को सांस्कृतिक विरासत से जुड़े स्थलों पर ले जाना हो या उन्हें उपहार में भारत की संस्कृति और विचार से जुड़े सामान देना, भारतीय संस्कृति को नई पहचान दिला रहा है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि कोई भी देश विकास की कितनी ही चेष्टा करे, कितना ही प्रयत्न करे लेकिन वह तब तक आगे नहीं बढ़ सकता, जब तक वो अपने इतिहास, अपनी विरासत, अपनी संस्कृति, अपनी उज्ज्वल परंपराओं के प्रति गर्व करना नहीं जानता। अपनी विरासत को छोड़कर आगे बढ़ने वाले देशों की पहचान खत्म होना तय होता है। इसलिए आज भारत अपनी अमूर्त सांस्कृतिक विरासत को भी बहुत महत्व दे रहा है। अपने विरासत स्थलों को संरक्षित एवं पुनर्जीवित करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है। बीते 10 वर्षों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने नेतृत्व से भारत की आध्यात्मिक विरासत को देश की एकता के साथ जोड़ने का काम किया है। धर्म के प्रति अटूट प्रतिबद्धता के जरिये उन्होंने कई ऐसे कार्यक्रम शुरू किए हैं जो बेहतर अवसरों के साथ भारत को उज्ज्वल भविष्य की ओर ले जा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सिर्फ आध्यात्मिक और वैज्ञानिक नेता ही नहीं हैं, उनकी हर साल केदारनाथ यात्रा, सैनिकों के साथ दीपावली मनाना, बोहरा समुदाय के साथ आत्मीय नाता भारत के विविध समुदायों से जुड़ने के उनके प्रयासों को दिखाते हैं। एक समग्र प्रयास कैसे समग्र विकास का जरिया बन जाता है, आज देश इसका साक्षी है। रामायण, सूफी, तीर्थंकर, बौद्ध सर्किट जैसी पहल सांस्कृतिक वैभव को गौरवशाली बना रहे है क्योंकि दुनिया पर धाक जमा रहे भारत की संस्कृति और संस्कार, सेवा, सुशासन और गरीब कल्याण के साथ विकसित भारत के सुनहरे सपने को समर्पित है। 

 

आजकल तो पूरा देश राममय है, राम जी की भक्ति में सराबोर है। लेकिन, प्रभु श्री राम का जीवन विस्तार, उनकी प्रेरणा, आस्था...भक्ति के दायरे से कहीं ज्यादा है। प्रभु राम, गवर्नेंस के, समाज जीवन में सुशासन के ऐसे प्रतीक हैं जो आपके संस्थान के लिए भी बहुत बड़ी प्रेरणा बन सकते हैं।

-नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री

 

महात्मा गांधी कहते थे कि राम राज्य का विचार ही, सच्चे लोकतंत्र का विचार है। गांधी जी के ऐसा कहने के पीछे वर्षों का उनका अध्ययन और दर्शन था। राम राज्य, यानि एक ऐसा लोकतंत्र जहां हर नागरिक की आवाज सुनी जाती थी और उसे उचित सम्मान मिलता था।

-नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री

 

राम राज्य वासियों के लिए कहा गया है - राम राज्य वासियों, अपना मस्तक ऊंचा रखो, न्याय के लिए लड़ो, सबको समान मानो, कमजोर की रक्षा करो, धर्म को सबसे ऊंचा जानो, अपना मस्तक ऊंचा रखो। राम राज्य, सुशासन के इन्हीं 4 स्तंभों पर खड़ा था। जहां सम्मान से, बिना भय के हर कोई सिर ऊंचा कर चल सके। जहां हर नागरिक के साथ समान व्यवहार हो। जहां कमजोर की सुरक्षा हो और जहां धर्म यानि कर्तव्य सर्वोपरि हो।

-नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री

 

श्रीरामलला सरकार की मूर्ति में भगवान विष्णु के 10 अवतार

मंदिर के गर्भगृह में श्रीरामलला सरकार की प्रतिमा 18 जनवरी को स्थापित की गई और 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा हुई। काले पत्थर से बनी इस प्रतिमा में बेशक पांच वर्ष के रामलला को खड़ी मुद्रा में दर्शाया गया है लेकिन मूर्ति में भगवान विष्णु के 10 अवतार को शामिल किया गया। मूर्ति के ऊपरी हिस्से में सूर्य भगवान और दोनों तरफ के गोलाकार हिस्से में स्वास्तिक, ऊँ, चंद्र, गदा है। वहीं निचले हिस्से में एक तरफ हनुमानजी और दूसरी तरफ गरुड़जी को रखा गया है।

 

1. मत्स्य

2. कूर्म

3. वराह

4. नृसिंह

5. वामन

6. परशुराम

7. राम

8. कृष्ण

9. बुद्ध

10. कल्कि

 

 मूर्ति का वजन करीब  200 किलोग्राम

 

मूर्ति की ऊंचाई 4.24 फीट

 

श्रीरामलला की प्रतिमा 2.5 अरब वर्ष पुराने काले ग्रेनाइट से निर्मित है जो कर्नाटक से लाया गया है। विशेष काला ग्रेनाइट इसकी पवित्रता को बढ़ाता है।

 

भारत के लिए धर्म का अर्थ है, हमारे कर्तव्यों का सामूहिक संकल्प! हमारे संकल्पों का ध्येय है, विश्व का कल्याण, मानव मात्र की सेवा।

              -नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री

 

एक प्रसंग में भगवान राम लक्ष्मण से कहते हैं- मैं चाहूं तो सागर से घिरी ये धरती भी मेरे लिए दुर्लभ नहीं है। लेकिन अधर्म के रास्ते पर चलते हुए अगर मुझे इंद्रपद भी मिले तो मैं स्वीकार नहीं करुंगा। हम तो अक्सर देखते हैं कि छोटे-छोटे लालच में ही कई बार लोग अपने कर्तव्य, अपनी शपथ को भूल जाते हैं। इसलिए आप भी अपने कार्यकाल में प्रभु राम की कही ये बात अवश्य याद रखिए।

-नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री

 

हर साज पर राम बजे, हर घर में आयोध्या सजे…

 

50 से अधिक वाद्ययंत्रों की मंगल ध्वनि…

 

श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा समारोह में करीब 2 घंटे तक विभिन्न राज्यों के 50 से अधिक दुर्लभ मनोरम वाद्ययंत्रों का मंगल वादन हुआ, शताब्दियों से ऐसी मंगल ध्वनि एक साथ नहीं सुनी गई थी। यह भव्य संगीत कार्यक्रम हर भारतीय के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर का प्रतीक है जो प्रभु श्रीराम के सम्मान में विविध परंपराओं को एकजुट करता है।

 

उत्तर प्रदेश 

पखावज, बांसुरी और ढोलक

 

कर्नाटक

वीणा

 

पंजाब

अलगोजा

 

महाराष्ट्र

सुंदरी

 

ओडिशा

मर्दल

 

मध्य प्रदेश

संतूर

 

मणिपुर

पुंग

 

असम

नगाड़ा, काली

 

छत्तीसगढ़

तंबूरा

 

दिल्ली

शहनाई

 

राजस्थान

रावणहत्था

 

प. बंगाल

श्रीखोल, सरोद

 

तमिलनाडु

नागस्वरम्, तविल और दृदंगम्

 

आंध्र प्रदेश

घटम

 

झारखंड़

सितार

 

गुजरात

संतार

 

बिहार

पखावज

 

उत्तराखंड

हुड़का

 

श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में लगाए गए 14 स्वर्ण द्वार

 

भगवान श्रीरामलला सरकार के गर्भगृह में स्वर्ण मंडित द्वार की स्थापना के साथ ही अयोध्या धाम में भूतल पर सभी 14 स्वर्ण द्वार लगाए जा चुके हैं। पहले स्वर्ण द्वार की ऊंचाई करीब 8 फीट और चौड़ाई 12 फीट है।

 

एक भारत श्रेष्ठ भारत का स्वरूप यह मंदिर

 

आत्मनिर्भर राम मंदिर का निर्माण किया गया है ताकि संसाधनों के लिए बाहरी निर्भरता न रहे। इसी तरह मंदिर निर्माण में पत्थर, लकड़ी, पीतल सहित सभी सामग्री अलग-अलग राज्यों से जुटाई गई है जो श्रीराम जन्मभूमि मंदिर को एक भारत, श्रेष्ठ भारत का स्वरूप बनाता है।

n             पिंक रंग का बलुआ पत्थर राजस्थान से आया।

n             टीक की उच्च गुणवत्ता वाली लकड़ी महाराष्ट्र से आई

n             तेलंगाना और कर्नाटक से ग्रेनाइट के पत्थर आए।

n             ब्रासवेयर उत्तर प्रदेश का है जबकि 42 घंटियां तमिलनाडु से आई हैं।

n             हस्तशिल्प वाले लकड़ी के दरवाजे हैदराबाद के हैं।

n             देश भर से प्रतिभाशाली शिल्पकारों ने उसे तराशा है।

 

राम आग नहीं, राम ऊर्जा हैं। राम विवाद नहीं, राम समाधान हैं। राम सिर्फ हमारे नहीं हैं, राम तो सबके हैं। राम वर्तमान ही नहीं, राम अनंतकाल हैं।

              -नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री

 

केंद्रीय मंत्रिमंडल में पारित प्रस्ताव

 

1947 में देश का शरीर स्वतंत्र हुआ

22 जनवरी 2024 को हुई प्राण प्रतिष्ठा

 

अयोध्या में श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा से देश दुनिया में उत्साह उमड़ा तो उससे केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक भी अछूती नहीं रही। भावना का यह ज्वार 24 जनवरी को हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में दिखा, जब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अयोध्या में मंदिर निर्माण और श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर धन्यवाद प्रस्ताव पारित कर आभार जताया। मंत्रिमंडल ने कहा कि देश का शरीर भले 1947 में स्वतंत्र हुआ, लेकिन उसमें आत्मा की प्राण प्रतिष्ठा 22 जनवरी 2024 को हुई है। देश-दुनिया में उमड़ी राममयी भावना में केंद्रीय मंत्रिमंडल भी सराबोर दिखा।

प्रस्ताव में कहा गया है कि प्रधानमंत्री ने अपने कार्यों से राष्ट्र का मनोबल ऊंचा किया है। इस देश का सांस्कृतिक इतिहास मजबूत किया है। भगवान राम के लिए जो जन आंदोलन देश-दुनिया में देखने को मिला, वह एक नए युग का परिवर्तन है। इतना बड़ा अनुष्ठान तभी संपन्न हो सकता है जब अनुष्ठान के कारक पर प्रभु की कृपा हो। जनता का जितना स्नेह आपको (प्रधानमंत्री) मिला है उसे देखते हुए आप जन-नायक तो हैं हीं, परंतु आप इस नए युग के परिवर्तन के बाद आप नवयुग परिवर्तक के रूप में भी सामने आए हैं। प्रस्ताव में कहा गया कैबिनेट के सदस्यों के लिए यह अवसर जीवन में एक बार का अवसर नहीं बल्कि अनेकों जन्मों में एक बार का अवसर कहा जा सकता है।

 

राम राज्य में टैक्स कैसे लिया जाता था, इस पर गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं- बरसत हरषत लोग सब, करषत लखै न कोइ, तुलसी प्रजा सुभाग ते, भूप भानु सो होइ। अर्थात, सूर्य पृथ्वी से जल खींचता है और फिर वही जल बादल बनकर, वर्षा के रूप में वापस धरती पर आता है, समृद्धि बढ़ाता है। हमारी टैक्स व्यवस्था भी वैसी ही होनी चाहिए। हमारा प्रयास होना चाहिए कि टैक्स की पाई-पाई, जन कल्याण में लगे और वो समृद्धि को प्रोत्साहित करे। आप अध्ययन करेंगे तो इसी प्रेरणा से हमने बीते 10 वर्षों में टैक्स सिस्टम में बहुत बड़े रिफॉर्म किए।

-नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री

 

5 ‌फरवरी 2020 को संसद में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने श्रीराम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट बनाने की घोषणा की। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट में 15 ट्रस्टी बनाए गए, जिसमें से एक ट्रस्टी हमेशा दलित समाज से रहने का प्रावधान किया गया।

-नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री

 

पीएम मोदी ने 11 दिन बाद चरणामृत से तोड़ा उपवास

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा में मुख्य यजमान बनने से पूर्व 11 दिन के विशेष यम-नियम का कठोरता से पालन किया। श्रीरामलला की गर्भगृह में प्राण प्रतिष्ठा के बाद चरणामृत से अपना उपवास तोड़ा। इससे पूर्व श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष स्वामी गोविंद देव गिरी ने मंच से कहा कि मुझे इस बात का आश्चर्य हुआ जब मुझे करीब 20 दिन पूर्व समाचार मिला की प्रधानमंत्री को इस प्रतिष्ठा के लिए स्वयं अपने लिए अनुष्ठान कर किस तरह सिद्ध करना चाहिए, इसकी नियमावली लिखकर दे दीजिए। हम लोगों ने महापुरुषों से परामर्श कर लिखा था कि तीन दिन का उपवास करना है, आपने 11 दिन का संपूर्ण उपोषण किया। हमने 11 दिन एक भुक्त (दिन में एक बार भाेजन) रहने के लिए कहा था, उन्होंने अन्न का ही त्याग कर दिया। ऐसा तपस्वी राष्ट्रीय नेता प्राप्त होना कोई सामान्य बात नहीं है। हमने आपको कहा था कि आपको विदेश प्रवास नहीं करना चाहिए। क्योंकि सांसारिक दोष भी आते हैं। विदेश प्रवास टाल दिया। दिव्य देश का प्रवास ऐसा किया, नासिक से आरंभ किया गुरुवायुर गए, श्रीरंगम गए, रामेश्वर गए। इन सभी स्थानों तक जाकर परमाणुओं को लेकर भारत माता के सभी कोणों में जाकर मानो निमंत्रण दे रहे थे कि आइए दिव्य आत्माओं अयोध्या पधारिये और हमारे राष्ट्र को महान बनाने के लिए आशीर्वाद दीजिए। हमने कहा था कि आपको तीन दिन भूमि शयन करना चाहिए, आप 11 दिन से भूमि शयन कर रहे हैं, इस कड़कड़ाती ठंड में।

 

सबका प्रयास का महत्व क्या होता है, इसका उत्तर भी हमें प्रभु श्रीराम के जीवन से ही मिलता है। श्रीराम के सामने विद्वान, बलशाली और संपन्न लंकाधिपति रावण की विराट चुनौती थी। इसके लिए उन्होंने छोटे-छोटे संसाधनों, हर प्रकार के जीवों को इकट्ठा किया, उनके साझे प्रयासों को एक विराट शक्ति में बदला, और अंत में सफलता रामजी को ही मिली। ऐसे ही विकसित भारत के निर्माण में भी हर अधिकारी, हर कर्मचारी, हर नागरिक की अहम भूमिका है।

-नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री

 

शोध के बाद तैयार

श्रीरामलला के वस्त्र आभूषण

 

भगवान श्रीरामलला के वस्त्र आभूषणों का निर्माण शोध और अध्ययन के बाद शास्त्र सम्मत किया गया है। भगवान बनारसी वस्त्र की पीताम्बर धोती और लाल रंग के पटुके से सुशोभित हैं। इन वस्त्रों पर शुद्ध स्वर्ण की जरी और तारों से काम किया गया है जिसमें वैष्णव मंगल चिन्ह - शंख, पद्म, चक्र और मयूर अंकित है।

 

मुकुट: अयोध्या के राजा का मुकुट सोने से निर्मित है। इसका वजन 1.7 किलो, 75 कैरेट के हीरे जड़े हैं। मध्य भाग में सर्यवंशी का प्रतीक चिन्ह है।

तिलक: श्रीरामलला के मस्तक पर तिलक के मध्य में 3 कैरेट का हीरा जड़ा है जो लगभग 10 कैरेट हीरों से घिरा है। प्राकृतिक बर्मी माणिक्य का उपयोग भी किया गया है।

कुण्डल: मुकुट के अनुरूप कर्ण-आभूषण बनाए गए हैं, जिनमें मयूर आकृतियां बनी हैं। यह भी सोने, हीरे, माणिक्य और पन्ने से सुशोभित है।

कण्ठा: गले में अर्द्धचन्द्राकार रत्नों से जड़ित कण्ठा सुशोभित है। मध्य में सूर्य देव बने हैं। सोने से बना हुआ यह कण्ठा हीरे, माणिक्य और पन्नों से जड़ा है। कण्ठे के नीचे पन्ने की लड़ियां लगाई गई हैं।

पदिकः कण्ठ से नीचे तथा नाभिकमल से ऊपर पहनाया गया हार होता है। यह पदिक पांच लड़ियों वाला हीरे-पन्ने का ऐसा पंचलड़ा है जिसके नीचे एक बड़ा सा अलंकृत पेण्डेंट लगाया गया है।

वैजयन्ती मालः स्वर्ण निर्मित यह सबसे लंबा हार है। इसमें कहीं-कहीं माणिक्य लगाए गए हैं जो विजय के प्रतीक के रूप में पहनाया जाता है। इसमें वैष्णव परम्परा के समस्त मंगल-चिन्ह सुदर्शन चक्र, पद्मपुष्प, शंख व मंगल-कलश दर्शाया गया है।

कमर में कांची: भगवान के कमर में रत्न जड़ित करधनी पहनाई गई है। यह हीरे, माणिक्य, मोतियों और पन्ने से यह अलंकृत है। छोटी-छोटी पांच घंटियां लगाई गई हैं जिसमें मोती, माणिक्य और पन्ने की लड़ियां भी लटक रही हैं।

भुजबन्ध और कंगन: भगवान की दोनों भुजाओं में स्वर्ण और रत्नों से जड़ित मुजबन्ध पहनाए गए हैं। दोनों ही हाथों में रत्नजड़ित सुंदर कंगन पहनाए गए हैं।

मुद्रिकाः दोनों हाथ रत्नजड़ित मुद्रिकाएं हैं जिनमें से मोतियां लटक रही हैं।

पैरों में पैजनियां: स्वर्ण की पैजनियां पहनाई गई हैं।

स्वर्ण धनुष: भगवान के बाएं हाथ में स्वर्ण का धनुष और दाहिने हाथ में बाण है। धनुष में मोती, माणिक्य और पन्ने की लटकने लगी हैं।

n भगवान के गले में रंग-बिरंगे फूलों की आकृतियों वाली वनमाला धारण कराई गई है। भगवान के मस्तक पर उनके पारंपरिक मंगल-तिलक को हीरे और माणिक्य से रचा गया है।

n श्रीरामलला 5 वर्ष के बालक के रूप में विराजे हैं इसलिए पारंपरिक ढंग से उनके सम्मुख खेलने के लिए चांदी से निर्मित खिलौने-झुनझुना, हाथी, घोड़ा, ऊंट, खिलौना गाड़ी तथा लट्टू रखे गए हैं।

n भगवान के चरणों के नीचे जो कमल सुसज्जित है उसके नीचे एक स्वर्ण माला सजाई गई है।

 

हर राम नवमी पर श्रीरामलला की मूर्ति पर सूर्य सा तेज। प्रत्येक राम नवमी पर दोपहर के समय मिरर और लेंस प्रणाली श्रीरामलला के माथे पर सूर्य के प्रकाश को केंद्रित करेगी। बिजली या बैटरी की आवश्यकता नहीं।

 

...और शाम को घर-घर प्रज्ज्वलित हुई राम ज्योति

 

श्रीराम जन्मूभूमि पर रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के पहले जहां देश भर में उत्सव का माहौल था तो वहीं प्राण प्रतिष्ठा के बाद शाम को दीपावली सा उमंग। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंदिर में अपने उद्बोधन के दौरान कहा, “गांव-गांव में एक साथ कीर्तन, संकीर्तन हो रहे हैं। मंदिरों में उत्सव हो रहे हैं, स्वच्छता अभियान चलाए जा रहे हैं। पूरा देश आज दीवाली मना रहा है। आज शाम घर-घर राम ज्योति प्रज्ज्वलित करने की तैयारी है।” ऐसा हुआ भी, शाम को न सिर्फ बड़े-बड़े उद्योगपति और नामचीन हस्तियां बल्कि आमजन ने भी राम ज्योति जलाई, दीपावली का उत्सव मनाया। गांव हो या शहर हर तरफ रंग बिरंगी रोशनी थी और खुशी के पटाखे छोड़े जा रहे थे। वहीं प्राण प्रतिष्ठा के दूसरे दिन 23 जनवरी को श्रद्धालुओं का ऐसा सैलाब उमड़ा कि एक ही दिन में 5 लाख से अधिक लोगों ने श्रीरामलला के दर्शन किए। इसकी वजह से ट्रस्ट को अपील जारी करनी पड़ी।

 

प्राण प्रतिष्ठा समारोह

'प्रधानमंत्री का उद्बोधन'

 

रामलला हुए विराजमान

 

रामकाज से राष्ट्रकाज तक

राम समर्पण से राष्ट्र समर्पण ही ध्येय…

 

राष्ट्र उत्सव का रूप ले चुका श्रीरामलला का प्राण प्रतिष्ठा समारोह एक नए युग की शुरुआत बनकर उभरा है। राम मंदिर भारत की दृष्टि का, भारत के दर्शन का, भारत के दिग्दर्शन का मंदिर बन गया है जो सही अर्थों में राष्ट्र चेतना का मंदिर बन गया है। इसी मार्ग पर आगे बढ़ रहा राष्ट्र अपने विकसित भारत के विराट संकल्प को साकार करेगा। भव्य-दिव्य-नव्य अयोध्या नगरी में श्रीरामलला के प्राण प्रतिष्ठा के बाद अपने विशेष उद्बोधन में एक तपस्वी, एक ऋषि और एक प्रधान सेवक के रूप में प्रभु श्रीराम के आदर्शों-मूल्यों के प्रति समर्पित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के लिए इस अवसर को एक नए कालचक्र का उद्गम बताया। उनके संबोधनों के महत्वपूर्ण बिंदुओं पर एक दृष्टि…...

 

हमारे राम आए हैं - आज हमारे राम आ गए हैं! सदियों का अभूतपूर्व धैर्य, अनगिनत बलिदान, त्याग और तपस्या के बाद हमारे प्रभु राम आ गए हैं। हमारे रामलला अब टेंट में नहीं रहेंगे। हमारे रामलला अब इस दिव्य मंदिर में रहेंगे। मेरा पक्का विश्वास है, अपार श्रद्धा है कि जो घटित हुआ है इसकी अनुभूति, देश के, विश्व के, कोने-कोने में रामभक्तों को हो रही होगी। ये क्षण अलौकिक है। ये पल पवित्रतम है। ये माहौल, ये वातावरण, ये ऊर्जा, ये घड़ी... प्रभु श्रीराम का हम सब पर आशीर्वाद है।

22 जनवरी, 2024 का ये सूरज एक अद्भुत आभा लेकर आया है। 22 जनवरी, 2024, ये कैलेंडर पर लिखी एक तारीख नहीं। ये एक नए कालचक्र का उद्गम है।

गुलामी की मानसिकता से मुक्ति - आज हमें श्रीराम का मंदिर मिला है। गुलामी की मानसिकता को तोड़कर उठ खड़ा हो रहा राष्ट्र, अतीत के हर दंश से हौसला लेता हुआ राष्ट्र, ऐसे ही नव इतिहास का सृजन करता है। हजार साल बाद भी लोग आज की इस तारीख की, आज के इस पल की चर्चा करेंगे। ये कितनी बड़ी रामकृपा है कि हम इस पल को जी रहे हैं, इसे साक्षात घटित होते देख रहे हैं। आज दिन-दिशाएं... दिग-दिगंत... सब दिव्यता से परिपूर्ण हैं।

सैकड़ों वर्षों के वियोग के लिए प्रभु राम करेंगे क्षमा- ये समय, सामान्य समय नहीं है। ये काल के चक्र पर सर्वकालिक स्याही से अंकित हो रहीं अमिट स्मृति रेखाएं हैं। हम सब जानते हैं कि जहां राम का काम होता है, वहां पवनपुत्र हनुमान अवश्य विराजमान होते हैं। इसलिए, मैं रामभक्त हनुमान और हनुमानगढ़ी को भी प्रणाम करता हूं। मैं माता जानकी, लक्ष्मण जी, भरत-शत्रुघ्न, सबको नमन करता हूं। मैं पावन अयोध्या पुरी और पावन सरयू को भी प्रणाम करता हूं। मैं इस पल दैवीय अनुभव कर रहा हूं कि जिनके आशीर्वाद से ये महान कार्य पूरा हुआ है... वे दिव्य आत्माएं, वे दैवीय विभूतियां भी इस समय हमारे आस-पास उपस्थित हैं। मैं इन सभी दिव्य चेतनाओं को भी कृतज्ञता पूर्वक नमन करता हूं। मैं आज प्रभु श्रीराम से क्षमा याचना भी करता हूं। हमारे पुरुषार्थ, हमारे त्याग, तपस्या में कुछ तो कमी रह गई होगी कि हम इतनी सदियों तक ये कार्य कर नहीं पाए। आज वो कमी पूरी हुई है। मुझे विश्वास है, प्रभु राम आज हमें अवश्य क्षमा करेंगे।

संविधान में अंकित राम- उस कालखंड में तो वो वियोग केवल 14 वर्षों का था, तब भी इतना असह्य था। इस युग में तो अयोध्या और देशवासियों ने सैकड़ों वर्षों का वियोग सहा है। हमारी कई-कई पीढ़ियों ने वियोग सहा है। भारत के तो संविधान में, उसकी पहली प्रति में, भगवान राम विराजमान हैं। संविधान के अस्तित्व में आने के बाद भी दशकों तक प्रभु श्रीराम के अस्तित्व को लेकर कानूनी लड़ाई चली। मैं आभार व्यक्त करूंगा भारत की न्यायपालिका का, जिसने न्याय की लाज रख ली। न्याय के पर्याय प्रभु राम का मंदिर भी न्यायबद्ध तरीके से ही बना।

प्राण प्रतिष्ठा के लिए 11 दिन का तप - कल (21 जनवरी) मैं श्रीराम के आशीर्वाद से धनुषकोडि में रामसेतु के आरंभ बिंदु अरिचल मुनाई पर था। जिस घड़ी प्रभु राम समुद्र पार करने निकले थे वो एक पल था जिसने कालचक्र को बदला था। उस भावमय पल को महसूस करने का मेरा यह विनम्र प्रयास था। वहां पर मैंने पुष्प वंदना की। वहां मेरे भीतर एक विश्वास जगा कि जैसे उस समय कालचक्र बदला था उसी तरह अब कालचक्र फिर बदलेगा और शुभ दिशा में बढ़ेगा।

अपने 11 दिन के व्रत-अनुष्ठान के दौरान मैंने उन स्थानों का चरण स्पर्श करने का प्रयास किया, जहां प्रभु राम के चरण पड़े थे। चाहे वो नासिक का पंचवटी धाम हो, केरला का पवित्र त्रिप्रायर मंदिर हो, आंध्र प्रदेश में लेपाक्षी हो, श्रीरंगम में रंगनाथ स्वामी मंदिर हो, रामेश्वरम में श्री रामनाथस्वामी मंदिर हो या फिर धनुषकोडि... मेरा सौभाग्य है कि इसी पुनीत पवित्र भाव के साथ मुझे सागर से सरयू तक की यात्रा का अवसर मिला। मुझे देश के कोने-कोने में अलग-अलग भाषाओं में रामायण सुनने का अवसर मिला है लेकिन विशेषकर पिछले 11 दिनों में रामायण अलग-अलग भाषा में, अलग-अलग राज्यों से मुझे विशेष रूप से सुनने का सौभाग्य मिला।

राम भक्तों के बलिदान का स्मरण- इस ऐतिहासिक समय में देश उन व्यक्तित्वों को भी याद कर रहा है, जिनके कार्यों और समर्पण की वजह से आज हम ये शुभ दिन देख रहे हैं। राम के इस काम में कितने ही लोगों ने त्याग और तपस्या की पराकाष्ठा करके दिखाई है। उन अनगिनत रामभक्तों के, उन अनगिनत कारसेवकों के और उन अनगिनत संत-महात्माओं के हम सब ऋणी हैं।

विजय से विनय का अवसर- यह अवसर उत्सव का क्षण तो है ही, लेकिन इसके साथ ही ये क्षण भारतीय समाज की परिपक्वता के बोध का क्षण भी है। हमारे लिए ये अवसर सिर्फ विजय का नहीं, विनय का भी है। दुनिया का इतिहास साक्षी है कि कई राष्ट्र अपने ही इतिहास में उलझ जाते हैं। ऐसे देशों ने जब भी अपने इतिहास की उलझी हुई गांठों को खोलने का प्रयास किया, उन्हें सफलता पाने में बहुत कठिनाई आई। बल्कि कई बार तो पहले से ज्यादा मुश्किल परिस्थितियां बन गईं। लेकिन हमारे देश ने इतिहास की इस गांठ को जिस गंभीरता और भावुकता के साथ खोला है, वो ये बताती है कि हमारा भविष्य हमारे अतीत से बहुत सुंदर होने जा रहा है।

सद्भाव का संदेश देता राम मंदिर- वह भी एक समय था, जब कुछ लोग कहते थे कि राम मंदिर बना तो आग लग जाएगी। ऐसे लोग भारत के सामाजिक भाव की पवित्रता को नहीं जान पाए। रामलला के इस मंदिर का निर्माण, भारतीय समाज के शांति, धैर्य, आपसी सद्भाव और समन्वय का भी प्रतीक है। हम देख रहे हैं, ये निर्माण किसी आग को नहीं, बल्कि ऊर्जा को जन्म दे रहा है। राम मंदिर समाज के हर वर्ग को एक उज्जवल भविष्य के पथ पर बढ़ने की प्रेरणा लेकर आया है। मैं आज उन लोगों से आह्वान करूंगा... आईये, आप महसूस कीजिए, अपनी सोच पर पुनर्विचार कीजिए।

राष्ट्रीय सहमति का प्रतीक: यह मंदिर, मात्र एक देव मंदिर नहीं है। ये भारत की दृष्टि का, भारत के दर्शन का, भारत के दिग्दर्शन का मंदिर है। ये राम के रूप में राष्ट्र चेतना का मंदिर है।

राम भारत की आस्था हैं, राम भारत का आधार हैं।

राम भारत का विचार हैं, राम भारत का विधान हैं।

राम भारत की चेतना हैं, राम भारत का चिंतन हैं।

राम भारत की प्रतिष्ठा हैं, राम भारत का प्रताप हैं।

राम प्रवाह हैं, राम प्रभाव हैं। राम नेति भी हैं।

राम नीति भी हैं। राम नित्यता भी हैं।

राम निरंतरता भी हैं। राम विभु हैं, विशद हैं।

राम व्यापक हैं, विश्व हैं, विश्वात्मा हैं। और इसलिए, जब राम की प्रतिष्ठा होती है तो उसका प्रभाव वर्षों या शताब्दियों तक ही नहीं होता। उसका प्रभाव हजारों वर्षों के लिए होता है।

‘वसुधैव कुटुंबकम्’ के विचार की भी प्रतिष्ठा- आज जिस तरह राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के इस आयोजन से पूरा विश्व जुड़ा हुआ है, उसमें राम की सर्वव्यापकता के दर्शन हो रहे हैं। जैसा उत्सव भारत में है, वैसा ही अनेकों देशों में है। आज अयोध्या का ये उत्सव रामायण की उन वैश्विक परम्पराओं का भी उत्सव बना है। रामलला की ये प्रतिष्ठा ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ के विचार की भी प्रतिष्ठा है।

आज अयोध्या में, केवल श्रीराम के विग्रह रूप की प्राण प्रतिष्ठा नहीं हुई है। ये श्रीराम के रूप में साक्षात् भारतीय संस्कृति के प्रति अटूट विश्वास की भी प्राण प्रतिष्ठा है। ये साक्षात् मानवीय मूल्यों और सर्वोच्च आदर्शों की भी प्राण प्रतिष्ठा है। इन मूल्यों की, इन आदर्शों की आवश्यकता आज सम्पूर्ण विश्व को है। सर्वे भवन्तु सुखिन: ये संकल्प हम सदियों से दोहराते आए हैं। आज उसी संकल्प को राम मंदिर के रूप में साक्षात् आकार मिला है।

हजारों वर्षों के लिए रामराज्य की स्थापना - महर्षि वाल्मीकि ने कहा है- राज्यम् दश सहस्राणि प्राप्य वर्षाणि राघवः। अर्थात, राम दस हजार वर्षों के लिए राज्य पर प्रतिष्ठित हुए। यानी हजारों वर्षों के लिए रामराज्य स्थापित हुआ। जब त्रेता में राम आए थे तब हजारों वर्षों के लिए रामराज्य की स्थापना हुई थी। हजारों वर्षों तक राम विश्व पथप्रदर्शन करते रहे थे।

यह सुखद संयोग है कि हमारी पीढ़ी को एक कालजयी पथ के शिल्पकार के रूप में चुना गया है। हजार वर्ष बाद की पीढ़ी, राष्ट्र निर्माण के हमारे आज के कार्यों को याद करेगी। इसलिए मैं कहता हूं- यही समय है, सही समय है। हमें आज से, इस पवित्र समय से, अगले एक हजार साल के भारत की नींव रखनी है।

राष्ट्र निर्माण की ओर कदम - आज अयोध्या भूमि हम सभी से, प्रत्येक रामभक्त से, प्रत्येक भारतीय से कुछ सवाल कर रही है। श्रीराम का भव्य मंदिर तो बन गया...अब आगे क्या? सदियों का इंतजार तो खत्म हो गया...अब आगे क्या? मंदिर निर्माण से आगे बढ़कर अब हम सभी देशवासी, यहीं इस पल से समर्थ-सक्षम, भव्य-दिव्य भारत के निर्माण की सौगंध लेते हैं। राम के विचार, ‘मानस के साथ ही जनमानस’ में भी हों, यही राष्ट्र निर्माण की सीढ़ी है।

युवा पीढ़ी, भारत की शक्ति - यह भारत के विकास का अमृतकाल है। आज भारत युवा शक्ति की पूंजी से भरा हुआ है, ऊर्जा से भरा हुआ है। मैं अपने देश के युवाओं से कहूंगा। आपके सामने हजारों वर्षों की परंपरा की प्रेरणा है। आप भारत की उस पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं...जो चांद पर तिरंगा लहरा रही है, जो 15 लाख किलोमीटर की यात्रा कर, सूर्य के पास जाकर मिशन आदित्य को सफल बना रही है, जो आसमान में तेजस... सागर में विक्रांत...का परचम लहरा रही है। अपनी विरासत पर गर्व करते हुए आपको भारत का नव प्रभात लिखना है। परंपरा की पवित्रता और आधुनिकता की अनंतता, दोनों ही पथ पर चलते हुए भारत, समृद्धि के लक्ष्य तक पहुंचेगा।

विकसित भारत की यात्रा… - आने वाला समय अब सफलता का है। आने वाला समय अब सिद्धि का है। ये भव्य राम मंदिर साक्षी बनेगा- भारत के उत्कर्ष का, भारत के उदय का, ये भव्य राम मंदिर साक्षी बनेगा- भव्य भारत के अभ्युदय का, विकसित भारत का! ये मंदिर सिखाता है कि अगर लक्ष्य, सत्य प्रमाणित हो, अगर लक्ष्य, सामूहिकता और संगठित शक्ति से जन्मा हो, तब उस लक्ष्य को प्राप्त करना असंभव नहीं है। मां शबरी तो कबसे कहती थीं- राम आएंगे। प्रत्येक भारतीय में जन्मा यही विश्वास,

समर्थ-सक्षम, भव्य-दिव्य भारत का आधार बनेगा। और यही तो है देव से देश और राम से राष्ट्र की चेतना का विस्तार!

भारत का समय है… - यह भारत का समय है और भारत अब आगे बढ़ने वाला है। शताब्दियों की प्रतीक्षा के बाद हम यहां पहुंचे हैं। हम सब ने इस युग का, इस कालखंड का इंतजार किया है। अब हम रुकेंगे नहीं। हम विकास की ऊंचाई पर जाकर ही रहेंगे।

 

प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में पीएम मोदी ने बताया कि अपने 11 दिन के व्रत अनुष्ठान के दौरान मैंने उन स्थानों का चरण स्पर्श करने का प्रयास किया, जहां प्रभु श्रीराम के चरण पड़े।

 

अयोध्या - श्रीराम जन्मभूमि : पूर्णतया भारतीय परंपरा एवं स्वदेशी तकनीक से निर्मित मंदिर

 

भारतीय संस्कृति की विरासत के तौर पर निर्मित श्रीराम मंदिर और अयोध्या की विकास योजना में स्वस्थ जनभागीदारी पर जोर दिया गया है, ताकि सदियों के इंतजार के बाद अयोध्या में साकार हो रहा राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण युगों-युगों तक मानवता का मार्गदर्शन करता रहे। संदेश साफ है राम मंदिर के निर्माण के बाद सिर्फ देश के लोग ही नहीं, जब भी कोई विदेशी भारत आएगा तो वह अयोध्या जाने की इच्छा जरूर रखेगा। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का पुनर्निर्माण चल रहा है जिसमें गर्भगृह और पहली मंजिल सहित बड़ा हिस्सा तैयार हो गया है। इसके गर्भगृह में श्रीरामलला सरकार विराजमान भी हो गए हैं।

 

70,000 श्रद्धालु हर दिन कर पाएंगे 12 से 14 घंटे मंदिर खुलने पर दर्शन, आने वाले दिनों में संख्या सवा लाख के पार होगी।

 

2,500 लोग मंदिर निर्माण में औसतन

दिन-रात जुटे रहे। इसमें राजस्थान, ओडिशा के विशेषज्ञ व भारत के पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्र के लोग भी शामिल हैं।

 

n             पांच मंडपों को पार करने के बाद श्रद्धालु गर्भगृह में पहुंचेंगे जहां रामलला विराजमान हैं।

n             श्रद्धालुओं को मंदिर की परिक्रमा के लिए 795 मीटर और भूतल से गर्भगृह तक पहुंचने में 390 फीट चलना होगा।

n             23 जनवरी-2024 से आम श्रद्धालुओं के लिए रामलला के दर्शन शुरू हो गए हैं।

n             अधिक से अधिक श्रद्धालु दर्शन कर पाएं इसलिए एक श्रद्धालु को दर्शन के लिए 17 से 20 सेकंड समय मिल पाएगा।

n             गर्भगृह में रामलला की जो प्रतिमा स्थापित की गई है उसकी ऊंचाई 51 इंच है। रामलला कमल के फूल के आकार के सिंहासन पर विराजमान हैं जो नौ ग्रहों की स्थिति को भी दर्शाता है।

n             मंदिर के प्रथम तल पर बने राम दरबार में श्री रामचंद्र, माता सीता, भगवान राम के सभी भाई और हनुमान जी की प्रतिमा शामिल।

n             दूसरी मंजिल पर श्रद्धालुओं को जाने की इजाजत नहीं है, यहां पर ‘श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र’ ट्रस्ट द्वारा विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाने की व्यवस्था रहेगी।

n             मंदिर के निर्माण पर कुल 1,800 से 2,000 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। यह पूरी राशि दान में मिली हुई है।

 

4 लाख क्यूबिक फीट पत्थर का उपयोग मंदिर निर्माण में किया गया है जिसे राजस्थान से लाया गया है।

 

भारतीय परंपरा के अनुसार व स्वदेशी तकनीक से श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का निर्माण

 

मंदिर के 2000 फीट नीचे टाइम कैप्सूल रखा गया है।

 

70 एकड़ की भूमि पर परिसर सहित मंदिर का निर्माण।

 

n             मंदिर परंपरागत नागर शैली से निर्मित है। कॉलम के डिजाइन में यह ध्यान रखा गया कि भारतीय परंपरा में हजारों सालों से जो मंदिर डिजाइन बन रहे हैं, उसे आधार बनाया गया है।

n             मुख्य गर्भगृह में प्रभु श्रीराम का बालरूप (श्रीरामलला सरकार का विग्रह) तथा प्रथम तल पर श्रीराम दरबार होगा।

n             मंदिर के समीप पौराणिक काल का सीताकूप विद्यमान रहेगा।

n             मंदिर में पूर्व दिशा से 32 सीढ़ियां चढ़कर सिंहद्वार से प्रवेश मिलेगा।

n             खंभों व दीवारों में देवी-देवताओं तथा देवांगनाओं की मूर्तियां उकेरी हैं।

n             मंदिर परिसर में स्वतंत्र रूप से सीवर ट्रीटमेंट प्लांट, वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट, अग्निशमन के लिए जल व्यवस्था तथा स्वतंत्र पॉवर स्टेशन का निर्माण किया है ताकि बाहरी संसाधनों पर न्यूनतम निर्भरता रहे।

n             विश्व हिंदू परिषद ने जो डिजाइन पहले बनाया था, उसी के इर्द-गिर्द मंदिर की जगह बढ़ने और वहां आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या को देखते हुए वर्तमान मंदिर को डिजाइन किया गया है।

n             दक्षिण पश्चिमी भाग में नवरत्न कुबेर टीला पर भगवान शिव के प्राचीन मंदिर का जीर्णो‌द्धार किया गया है।

 

सनातन के हिसाब से एक कॉलम में 16 मूर्तियां आएंगी। सनातन के समावेश से डिजाइन किया गया। सिंह दरबार में कोई प्रवेश करता है तो वह राममय हो जाएगा।

 

श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के प्रवेश द्वार पर गज, सिंह, हनुमान जी और गरुड़ जी की मूर्तियां स्थापित की गई हैं। ये मूर्तिया राजस्थान के ग्राम बंसी पहाड़पुर के हल्के गुलाबी रंग के बलुआ पत्थर से बनी हैं।

 

392 खंभे और 44 द्वार मंदिर में हैं, मंदिर तीन मंजिला है। प्रत्येक मंजिल की ऊंचाई 20 फुट है।

 

मंदिर की लंबाई पूर्व से पश्चिम 380 फीट, चौड़ाई 250 फीट और ऊंचाई 161 फीट है।

 

प्राण प्रतिष्ठा समारोह के मुख्य बिंदु

 

n             सभी परंपराओं के करीब 4,000 साधु-संत सहित किसी भी क्षेत्र में देश का सम्मान बढ़ाने वाले प्रमुख लोगों को आमंत्रित किया गया।

n             नवस्थापित तीर्थक्षेत्रपुरम (बाग बिजैसी) में टिन का नगर बसाया गया जिसमे छः नलकूप, छः रसोई घर और दस बिस्तरों वाला एक अस्पताल स्थापित किया गया। देशभर के लगभग डेढ़ सौ चिकित्सकों ने इसमें क्रमिक सेवा दी।

n             नगर के हर कोने में लंगर, भोजनालय, भंडारा, अन्नक्षेत्र चले।

n             स्वामी नारायण, आर्ट ऑफ लिविंग, गायत्री परिवार, किसान, कला जगत के प्रमुख लोगों को आमंत्रित किया गया।

n             कारसेवकों के परिजनों को भी आमंत्रण।

n             भगवान श्री रामलला सरकार के श्री विग्रह रूप में पांच वर्ष के बालक की कोमलता के साथ मूर्तिकार अरुण योगीराज, गणेश भट्ट, सत्यनारायण पांडेय ने तराशी। लेकिन एक चयन प्रक्रिया के बाद कर्नाटक के प्रसिद्ध मूर्तिकार अरुण योगीराज द्वारा तराशी गई मूर्ति को गर्भगृह में स्थापित किया गया।

 

मंदिर परिसर में सात अन्य मंदिर बनेंगे

जो सामाजिक समरसता के हैं प्रतीक

 

मंदिर परिसर में भगवान राम से संबंधित कई गुरुओं, रामजी से जुड़ाव रखने वालों को भी जगह दी गई है। रामजी के गुरु महर्षि वाल्मीकि, महर्षि वशिष्ठ, महर्षि विश्वामित्र, महर्षि अगस्त्य, निषादराज, माता सबरी और देवी अहिल्या का भी मंदिर होगा।

 

श्रीराम मंदिर निर्माण के दूसरे चरण में सात अन्य मंदिर बनेंगे जिसमें रामायण के सभी पूजनीय चरित्र शामिल होंगे। सभी के डिजाइन फाइनल है, जगह आवंटित है। यह सामाजिक समरसता का स्वरूप है।

 

अयोध्या के श्रीराम मंदिर में 5 मंडप हैं

 

नृत्य मंडप, रंग मंडप, सभा मंडप, प्रार्थना एवं कीर्तन मंडप। जो शुरुआती डिजाइन था उसमें दो मंडप रखे गए थे। श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ने की वजह से मंडप बढ़ाए गए ताकि क्षेत्र बढ़ जाए। पुराना मॉडल लोगों के दिमाग में था इसलिए उसे पूरी तरह से नहीं बदला गया।

 

आयाताकार 732 मीटर लंबे परकोटा में 6 मंदिर

 

मंदिर की सुरक्षा के लिए परकोटा बनाने की योजना बनी। चारों ओर आयाताकार परकोटा बना है जिसकी लंबाई 732 मीटर और चौड़ाई 14 फीट है। विष्णु के अवतार हैं राम तो परकोटा के चार कोनों पर भगवान सूर्य, मां भगवती, शिव एवं गणपति के मंदिर स्थापित किए गए। पुरानी सीता रसोई थी, जहां रामजी का भोग बनेगा वहीं उत्तरी भुजा में मां अन्नपूर्णा का मंदिर है। दक्षिण भुजा में हनुमान जी का मंदिर है। इस पूरे कॉरिडोर में कुल छह मंदिर की स्थापना की गई, इनके दर्शन करने के बाद रामलला का दर्शन करेंगे। सनातन के इतिहास को उस कॉरिडोर में रखा गया है। मंदिर को ऐसा प्रारूप दिया गया है ताकि सनातन धर्म का पूरा नॉलेज बैंक यहां मिले। इस हिसाब से पूरे कॉरिडोर को बनाया गया है।

 

उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को अयोध्या में मस्जिद बनाने के लिए 5 एकड़ भूमि सरकार द्वारा दी गई।

 

70 एकड़ का मंदिर परिसर

70 प्रतिशत हरित क्षेत्र

 

श्रीराम मंदिर परिसर के डिजाइन में मिनिमम कंस्ट्रक्शन, मैक्सीमम ग्रीनरी के थीम का ध्यान रखा गया है। यही वजह है कि सिर्फ 30 फीसदी हिस्से में निर्माण और बाकी 70 फीसदी हिस्सा सदा हरित रहेगा। पर्यावरण और जल संरक्षण का विशेष ध्यान रखा गया है। जीरो कार्बन और नो वेस्टेज को ध्यान में रखकर डिजाइन किया गया। कुबेर टीला, शेषनाग टीला सहित तीन टीले बनाए गए हैं। कुबेर टीला के ऊपर एक शिवलिंग पहले से था, लोग पूजा भी करने जाते हैं। इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया है। साथ में यहां गरूड़ जी को भी स्थापित किया गया।

 

श्रीराम मंदिर की नींव भी विशेष, सिर्फ पत्थर से पूरा निर्माण

 

श्री राम जन्मभूमि मंदिर के शिल्पकार आशीष सोनपुरा बताते हैं जब नींव खोदी गई तो पता चला कि यहां की जमीन रेतीली है। यह माना गया कि सरयू नदी के कारण यहां ठोस जमीन नींव के लिए मिलनी मुश्किल है। सामान्य तौर पर मंदिर की जिस तरह नींव डाली जाती है, यहां वैसा नहीं हो पाएगा। इसी को ध्यान में रखकर विशेषज्ञों की एक टीम ने ऐसा डिजाइन तैयार किया जिसमें स्थानीय रेत, सीमेंट और कई मैटेरियल की लेयर बनाते हैं। एक फीट का लेयर बनाकर उसे 9 इंच तक दबाते हैं। ऐसे 45 लेयर बनाए गए। प्लिंथ एरिया पूरा सॉलिड ग्रेनाइट का बनाया गया।

 

लोहे का इस्तेमाल नहीं : मंदिर निर्माण में कहीं भी लोहे का इस्तेमाल नहीं किया गया है। धरती के ऊपर कंक्रीट का इस्तेमाल नहीं किया गया जबकि जमीन के नीचे गर्भगृह पर 14 मीटर मोटी रोलर कॉम्पेक्टिड कंक्रीट(आरसीसी) बिछाई गई है। मंदिर की नींव को एक कृत्रिम चट्‌टान का रूप दिया गया है। नमी से बचाव के लिए 21 फीट ऊंची प्लिंथ ग्रेनाइट से बनाई गई है।

 

2500 साल तक मंदिर स्ट्रक्चर सुरक्षित

 

श्रीराम जन्मभूमि मंदिर विश्व का पहला ऐसा मंदिर है जिसका बनने से पहले स्ट्रक्चर का एनालिसिस हो चुका है। वो भी 2,500 साल के लिए। 2,500 वर्ष के दौरान कैसी भी आपदा आएगी, इस मंदिर को नुकसान नहीं होगा।

 

करीब 500 साल पुराना संघर्ष

 

आजाद भारत का सबसे बड़ा आंदोलन

 

n             22-23 दिसंबर, 1949 की रात को विवादित ढांचे में रामलला की मूर्ति मिली थी।

n             वर्ष 1950 में फैजाबाद सिविल कोर्ट में दो याचिकाएं दाखिल हुईं।

n             1 फरवरी, 1986 को कोर्ट के आदेश से विवादित ढांचे का ताला खोला गया और श्रद्धालुओं को जाने की अनुमति दी।

n             6 दिसंबर, 1992 में विवादित ढांचा कार सेवकों ने गिराया।

n             30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित जमीन को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच तीन हिस्सों में बांटने का आदेश सुनाया। फैसला पक्षों को मंजूर नहीं था इसलिए उच्चतम न्यायालय का रुख किया।

n             9 नवंबर, 2019 को पांच जजों की बेंच ने राम मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया। विवादित जमीन हिंदू को मिली तो वहीं मस्जिद के लिए 5 एकड़ जमीन मुहैया कराने का आदेश दिया।

n             5 जनवरी, 2020 को हुई ट्रस्ट बनाने की घोषणा, श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट बनाया गया।

n             5 अगस्त, 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीराम जन्मभूमि निर्माण के लिए शिलान्यास किया।

 

अयोध्या, श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में विश्वस्तरीय सुविधाएं

 

35,000 से 50 हजार दर्शनार्थी परिसर में एक साथ रह सकते हैं।

 

n  मंदिर परिसर में दर्शनार्थी सुविधा केंद्र स्थापित किया गया।

n  स्नानागार, शौचालय, वॉश बेसिन, ओपन टैप्स आदि की सुविधा।

n  दिव्यांग एवं वृद्धों के लिए रैंप और लिफ्ट की व्यवस्था।

 

25,000 क्षमता वाले एक दर्शनार्थी सुविधा केंद्र का निर्माण, जहां दर्शनार्थियों का सामान रखने के लिए लॉकर व चिकित्सा की सुविधा रहेगी।

 

आध्यात्मिक केंद्र, वैश्विक पर्यटन केंद्र और

स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित होती अयोध्या

 

अयोध्या को आध्यात्मिक केंद्र, वैश्विक पर्यटन केंद्र और भव्य स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित किया जा रहा है। शहर में एक आगामी ग्रीनफील्ड टाउनशिप की भी योजना बनाई जा रही है जिसमें भक्तों के लिए आवास सुविधाएं, आश्रम, मठ, होटल, विभिन्न राज्यों के भवनों के लिए जगह शामिल होगी। एक पर्यटक सुविधा केंद्र, एक विश्व स्तरीय संग्रहालय भी बनाया जाएगा। सरयू नदी और उसके घाटों के आसपास बुनियादी ढांचे के विकास पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। सरयू नदी पर क्रूज का भी नियमित संचालन किया जाएगा। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में प्रभु श्रीराम के दर्शन के लिए आने वाले तीर्थ यात्रियों के लिए यह शहर न केवल बुनियादी ढांचे के रूप में बल्कि दुनिया भर से तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के स्वागत के लिए डिजिटल रूप से भी तैयार है।

 

अयोध्या के दीपोत्सव में नित नए रिकॉर्ड

 

प्रभु श्रीराम 14 वर्ष के वनवास और लंका विजय कर जब लौटे तब से उस दिन दीपोत्सव मनाया जाता है। श्रीराम जन्मभूमि पर रामराज की संकल्पना को आगे बढ़ाते हुए 2017 से अयोध्या में सरयू तट पर विशेष दीपोत्सव दीपावली से एक दिन पूर्व मनाई जाने लगी। वर्ष 2023 में 22.23 लाख दिव्य दीप जलाए गए, यह एक कीर्तिमान है। ड्रोन से दीपों की गणना की गई और फिर इसे गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज किया गया। इससे पहले 18.81 लाख दीप जलाने का रिकॉर्ड दर्ज था। करीब 50 देशों के राजनयिक अयोध्या में दीपोत्सव के साक्षी बने।

n             अयोध्या की 84 कोसी परिक्रमा की परिधि में आने वाले सभी धार्मिक, पौराणिक और ऐतिहासिक स्थलों के जीर्णोद्धार का काम तेज गति से किया जा रहा है।

n             2019 में दो करोड़ पर्यटक अयोध्या आए, जिसके 2047 तक 10 करोड़ पहुंचने का अनुमान है।

 

श्री केदारनाथ धाम का पुनर्विकास

 

1,300 करोड़ रुपये की लागत से चार धाम की दिव्य यात्रा के लिए केदारनाथ-बद्रीनाथ धाम का पुनर्निर्माण किया गया।

 

वर्ष 2013 में आई आपदा से तीर्थ नगरी में भारी तबाही हुई थी। मंदिर परिसर में कई भवन क्षतिग्रस्त हो गए थे। 30 हजार टन मलबा चारों ओर फैल गया था। मलबे को 840 फीट सीढ़ीदार मंदिर गलियारे के रूप में विकसित किया गया।

n             केदारनाथ धाम में 2017 में पीएम मोदी ने आध्यात्मिक गौरव और दिव्य स्वरूप को पुन: स्थापित करने के लिए श्री केदारनाथ धाम पुनर्निर्माण योजना की परिकल्पना की।

n             पर्यावरणीय संतुलन बनाते हुए एक महायोजना तैयार की गई थी।

n             दो नदियों के संगम पर आगमन प्लाजा का निर्माण वृत्ताकार रूप में 51 हजार स्थानीय पत्थरों का उपयोग कर किया गया है।

n             मंदिर प्लाजा का निर्माण 4,340 वर्गमीटर क्षेत्र में 15,200 स्थानीय पत्थरों से किया गया।

n             केदारनाथ धाम के पुनर्निर्माण से जुड़ा पहला चरण पूरा हो चुका है। श्री बद्रीनाथ धाम में भी सैकड़ों करोड़ रुपये की लागत से अनेक कार्य किए जा रहे हैं।

n             गौरीकुंड से 16 किमी दूर धाम में इस पैमाने की योजना को क्रियान्वित करना चुनौती थी। पहुंच मार्ग का निर्माण पहले कार्य के रूप में किया।

n             बाढ़ से सरस्वती और मंदाकिनी नदी के किनारे की भूमि का पुनर्ग्रहण और बहुस्तरीय बाढ़ सुरक्षा उपाय कर मंदिर परिसर को एक द्वीप के रूप में बहाल करने के लिए बाढ़ सुरक्षा दीवारों का निर्माण कार्य किया गया है।

n             चौथे कार्य के रूप में तीर्थ पुरोहितों के आवासों के पुनर्निर्माण का कार्य किया गया।

n             चरणबद्ध तरीकों से तीर्थ पुरोहितों के आवासों का निर्माण स्थानीय पत्थरों, लकड़ी और ढलवा छतों का उपयोग कर स्थानीय स्थापत्य शैली द्वारा किया जा रहा है।

n             पांचवे कार्य के रूप में क्षतिग्रस्त श्री आदि गुरु शंकराचार्य समाधि का पुनर्निर्माण, 12 फीट ऊंची प्रतिमा लगाई गई जिसका अनावरण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया।

n             केदाननाथ धाम में एक ध्यान गुफा है जिसमें नवंबर, 2021 में पीएम मोदी ने 17 घंटे बिताए थे, जो भक्तों के बीच आकर्षण का केंद्र बनी।

n             पीएम मोदी ने अक्टूबर, 2022 में केदारनाथ धाम के दर्शन व पूजा अर्चना करने के साथ ही मंदाकिनी आस्थापथ और सरस्वती आस्थापथ में चल रहे विकास कार्यों की समीक्षा भी की।

n             मंदाकिनी और सरस्वती नदी के तट पर स्नान और धार्मिक अनुष्ठानों को सुगम करने के लिए विशाल संगम घाट का निर्माण।

n             किसी भी अप्रिय घटना के समय यात्रियों को चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए चिकित्सालय का निर्माण किया जा रहा है। इसमें आपातकालीन सेवाएं, ऑपरेशन थियेटर, आइसीयू सुविधाएं होंगी।

n             यह निर्माण योजनाएं मात्र भौतिक सुविधाओं को ध्यान में रखकर नहीं बल्कि इस स्थल की लौकिक व तीर्थयात्रियों की आंतरिक ऊर्जा को पुन: जागृत करने का एक प्रयास है।

n             भारत की 2,00,000वीं 5जी साइट गंगोत्री में चालू हुई जो चार धाम फाइबर कनेक्टिविटी को समर्पित।

n             केदारनाथ-मानसखंड कनेक्टिविटी पर सरकार काम कर रही है। जो लोग केदारनाथ व बद्रीनाथ धाम आते हैं वो जागेश्वर धाम, आदि कैलाश और ओम पर्वत भी आसानी से जा सकें, इसका प्रयास है।

 

सिख धर्म की समृद्ध संस्कृति का सम्मान

बना करतारपुर साहिब कॉरिडोर

 

विरासत और संस्कृति पर गर्व करने और उससे सीखने की कड़ी में पिछले 10 वर्षों के दौरान गुरु तेग बहादुर जी के 400वें प्रकाश पर्व, गुरु नानक देव साहब के 550वें प्रकाश पर्व, गुरु गोविंद सिंह जी के 350वें प्रकाश पर्व, लंगर से जीएसटी हटाने, करतारपुर साहिब कॉरिडोर के निर्माण, सुल्तानपुर लोदी को हेरीटेज सिटी बनाने, ब्रिटिश विश्वविद्यालय में गुरु नानक देव जी के नाम पर पीठ स्थापित करने, गुरु ग्रंथ साहिब की प्रतियां अफगानिस्तान से भारत लाने और पाकिस्तान में सिख यात्रियों के जाने की सुविधा जैसे कई महत्त्वपूर्ण काम हुए हैं। वहीं साहिबजादों के बलिदान को चिन्हित करने के लिए 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस मनाने की शुरुआत की गई।

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 9 नवंबर, 2019 को गुरदासपुर स्थित डेरा बाबा नानक में करतारपुर कॉरिडोर की चेकपोस्ट से तीर्थयात्रियों के पहले जत्थे को हरी झंडी दिखाई। करतारपुर साहिब कॉरिडोर तैयार करने के लिए भारत ने 24 अक्टूबर, 2019 को पाकिस्तान के साथ समझौता किया था।

 

2.30 लाख तीर्थयात्रियों ने करतारपुर कॉरिडोर के उद्घाटन के बाद से दिसंबर, 2023 तक गुरुद्वारा श्री दरबार साहिब करतापुर जाने के लिए श्री करतारपुर साहिब कॉरिडोर का उपयोग किया। यह कॉरिडोर सप्ताह के सभी सात दिन खुला रहता है।

 

120 करोड़ रुपये की लागत से चार लेन वाला 4.2 किलोमीटर लंबा राजमार्ग डेरा बाबा नानक को अमृतसर-गुरदासपुर राजमार्ग से जोड़ने के लिए बनाया गया।

 

n             15 एकड़ जमीन पर शानदार यात्री टर्मिनल भवन बनाया गया है, यह भवन पूरी तरह से वातानुकूलित है। यहां 50 इमिग्रेशन काउंटर हैं।

n             मुख्य इमारत में जनसुविधाओं के साथ ही प्रार्थना कक्ष, अल्पाहार काउंटर आदि मौजूद हैं।

n             सुरक्षा के लिए सीसीटीवी कैमरे से निगरानी की व्यवस्था और जन सूचना प्रणाली लगाई गई है।

 

300 फीट ऊंचा राष्ट्रीय ध्वज अंतरराष्ट्रीय सीमा पर फहराया गया है।

 

सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण पर बढ़ाया खर्च

संस्कृति मंत्रालय प्राचीन सांस्कृतिक विरासत में सम्मिलित कला एवं संस्कृति के मूर्त और अमूर्त दोनों रूपों के परिरक्षण, संरक्षण और संवर्धन के लिए शताब्दी और वर्षगांठ स्कीम, कला संस्कृति विकास योजना, संग्रहालयों का विकास, पुस्तकालयों का विकास, वैश्विक भागीदारी, राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन और राष्ट्रीय सांस्कृतिक मानचित्रण और रोडमैप मिशन चला रही है। इन योजनाओं पर जहां वर्ष 2019 में करीब 402 करोड़ रुपये खर्च किए, वहीं 2022-23 में यह बढ़कर 770 करोड़ रुपये से अधिक हो गया।

 

3697 प्राचीन स्मारक, पुरातात्विक स्थल और अवशेष देश में राष्ट्रीय महत्व के रूप में घोषित हैं।

 

श्री उज्जैन महाकाल मंदिर कॉरिडोर का पुनरुद्धार

•             मंदिर परिसर का करीब 7 गुना विस्तार होगा।

•             प्रति वर्ष 1.5 करोड़ मौजूदा पर्यटकों की संख्या को दोगुना करने का लक्ष्य।

•             ‘महाकाल लोक’ में भव्य प्रवेश द्वार है तो वहीं 384 मीटर लंबी म्यूरल्स वॉल बनाई गई है। यहां शिव की 25 कथाओं को प्रदर्शित किया गया है।

n             उज्जैन का महाकाल मंदिर विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां दक्षिणमुखी शिवलिंग प्रतिस्थापित है। यही वजह है कि भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में ‘महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग’ विशेष महत्व रखता है।

n             आध्यात्मिकता के इस महान केंद्र को भव्यतम रूप महाकाल लोक परियोजना के जरिये दिया गया है जिसका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 11 अक्टूबर, 2022 को शुभारंभ किया।

 

856 करोड़ रुपये की लागत से महाकाल के आंगन को 2 चरण में विकसित किया जा रहा है जिसके पूरा होने पर महाकाल का पूरा क्षेत्र 47 हेक्टेयर का हो जाएगा।

 

प्लाजा का क्षेत्रफल 2.5 हेक्टेयर का है और एक तरफ से कमल के तालाब से घिरा हुआ है जिसमें पानी के फव्वारे के साथ शिव की मूर्ति है।

 

108 स्तंभ महाकाल पथ में हैं जो भगवान शिव के आनंद तांडव स्वरूप (नृत्य रूप) को दर्शाते हैं। महाकाल पथ के किनारे भगवान शिव के जीवन को दर्शाने वाली कई धार्मिक मूर्तियां स्थापित की गई हैं।

 

महालोक परियोजना के पहले चरण में विश्व स्तरीय सुविधाएं विकसित की गई हैं। इसी चरण में भीड़भाड़ को नियंत्रित करने और विरासत संरचनाओं के संरक्षण-जीर्णोद्धार का काम शामिल है। परियोजना में मंदिर परिसर का सात गुना विस्तार तय है।

 

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और सर्विलांस कैमरों की मदद से इंटीग्रेटेड कमांड एंड कंट्रोल सेंटर द्वारा इस पूरे परिसर की चौबीसों घंटे निगरानी की व्यवस्था है।

 

पम्बन पुल, तमिलनाडु

भारत का पहला वर्टिकल लिफ्ट ब्रिज जो रामेश्वरम द्वीप को भारत के मंडपम शहर से जोड़ता है।

 

कामाख्या मंदिर गलियारा

असम के गुवाहाटी में कामाख्या मंदिर के आसपास के क्षेत्र को 3 हजार वर्ग फीट से बढ़ाकर लगभग एक लाख वर्ग फीट तक किया गया। इस परिसर में 6 मंदिरों का जीर्णोद्धार किया जाएगा।

 

कश्मीर में धार्मिक स्थलों की लौटने लगी रौनक

कश्मीर से अगस्त, 2019 में धारा 370 हटाई गई और साथ में आतंकवाद पर जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई गई। इसका असर हुआ कि आतंकवाद का खौफ कम हुआ जिससे खंडहर और वीरान हो चुके धार्मिक स्थलों को आबाद करने का काम शुरू हुआ।

 

300 साल पुराने रघुनाथ मंदिर, डालगेट में चर्च और श्रीनगर की एक मस्जिद को पुराने रूप में लौटाने के लिए स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत सबसे पहले चुना गया।

n             रघुनाथ मंदिर की रौनक लौट आई और अब यहां न सिर्फ पूजा अर्चना बल्कि विरासत से युवाओं को परिचित कराने के लिए प्रदर्शनी भी लगती है।

n             गुलमर्ग में सबसे पहले जून, 2021 में शिव मंदिर का जीर्णोद्धार कर सेना द्वारा भव्य उद्घाटन समारोह के बाद खोल दिया गया।

n             मई, 2022 में अनंतनाग जिले में स्थित मार्तंड सूर्य मंदिर में भी पूजा अर्चना की गई। इससे पूर्व फरवरी, 2021 में शीतलनाथ मंदिर में भी  वसंत पंचमी से पूजा अर्चना शुरू की गई।

 

25000 से अधिक श्रद्धालु खीर भवानी मेले में हुए शामिल

श्रीनगर से करीब 27 किलोमीटर दूर मध्य कश्मीर स्थित खीर भवानी मंदिर में हर साल श्रद्धालु पूजा अर्चना करने पहुंचते हैं। माता रगन्या देवी के इस मंदिर में अक्टूबर 2019 में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी पूजा अर्चना के लिए पहुंचे थे। आतंकवाद में कमी आने और पुख्ता सुरक्षा इंतजाम के बीच वर्ष 2023 में वार्षिक खीर भवानी मेले में करीब 25 हजार से अधिक श्रद्धालु शामिल हुए। यह मंदिर कश्मीरी पंडितों के आध्यात्मिक जीवन में एक पवित्र स्थान रखता है। वर्ष 2022 में ज्येष्ठ अष्टमी के शुभ अवसर पर 18 हजार कश्मीर पंडित और श्रद्धालुओं ने मां खीर भवानी के दर्शन किए थे।

 

बौद्ध सर्किट को मिली हवाई मार्ग से कनेक्टिविटी

n             प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 अक्टूबर 2021 को कुशीनगर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा का उद्घाटन किया जिससे पर्यटकों की संख्या में वृद्धि और स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अधिक अवसर पैदा हो रहे हैं।

n             कुशीनगर एक अंतरराष्ट्रीय बौद्ध तीर्थ केंद्र है, जहां भगवान गौतम बुद्ध ने महापरिनिर्वाण प्राप्त किया था। यह बौद्ध सर्किट का केंद्र बिंदु भी है, जिसमें लुंबिनी, सारनाथ और गया के तीर्थस्थल शामिल हैं।

n             केंद्र सरकार भगवान बुद्ध से जुड़े हुए बौद्ध स्थलों के लिए बुद्धिस्ट सर्किट विकसित कर रही है। बुद्धिस्ट सर्किट के अंतर्गत मुख्य विकास कार्यों में कनेक्टिविटी, इंफ्रास्ट्रक्चर व लॉजिस्टिक, सांस्कृतिक शोध, विरासत एवं शिक्षा, जन जागरूकता, संचार और पहुंच शामिल हैं।

n             उत्तर प्रदेश का कुशीनगर प्रमुख बौद्ध तीर्थ स्थलों में से भी एक है। कुशीनगर का विकास केंद्र और राज्य सरकार की प्राथमिकताओं में है।

n             हवाई अड्डा होने से देश और विदेश से बौद्ध धर्म के अधिक से अधिक अनुयायी कुशीनगर आ सकेंगे।  बौद्ध सर्किट के लुंबिनी, बोधगया, सारनाथ, कुशीनगर, श्रावस्ती, राजगीर, संकिसा और वैशाली की यात्रा अब कम समय में पूरी हो सकेगी।

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भगवान बुद्ध की जन्मस्थली लुंबिनी की यात्रा करने वाले पहले पीएम बने हैं।

 

पर्यटन मंत्रालय ने अतुल्य भारत वेबसाइट पर बौद्ध स्थलों को दर्शाया है। एक वेबसाइट www.indiathelandofbuddha.in भी विकसित किया है। 

 

पंढरपुर: पालखी मार्ग से सुगम होगी राह

 

223 किमी से अधिक की सड़क परियोजनाएं पीएम मोदी ने 8 नवंबर 2021 को पंढरपुर तक राजमार्गों पर बेहतर कनेक्टिविटी के लिए राष्ट्र को समर्पित की।

 

n             इनमें म्हसवड-पिलीव-पंढरपुर, कुर्दुवाड़ी-पंढरपुर, पंढरपुर-संगोला, एनएच 561ए का तेम्भुरनी-पंढरपुर खंड और एनएच 561ए के पंढरपुर-मंगलवेढा-उमाडी खंड शामिल हैं।

n             श्रद्धालुओं के पंढरपुर आवागमन को सुविधाजनक बनाने के प्रयास के तहत श्री संत ज्ञानेश्वर महाराज पालखी मार्ग के पांच खंडों और श्री संत तुकाराम महाराज पालखी मार्ग के तीन खंडों को चार लेन बनाने के कार्य की पीएम मोदी ने आधारशिला रखी थी जिस पर काम जारी है।

 

यह भारत के युवाओं के बीच वारकरी परंपरा को और लोकप्रिय बनाने के हमारे प्रयासों का एक हिस्सा है।

 

सूर्य मंदिर पूरी तरह से सौर ऊर्जा से संचालित

 

n             ख्याति की दृष्टि से कोणार्क सूर्य मंदिर के बाद दूसरा स्थान रखने वाला मोढेरा का सूर्य मंदिर गुजरात में मंदिर वास्तुकला का बेहतरीन नमूना है। इसका निर्माण 11वीं शताब्दी में किया गया था।

n             यह मंदिर पाटन शहर से 30 किलोमीटर दूर रूपेन नदी की सहायक पुष्पावती नदी के बायें किनारे मेहसाणा जिले के बेचराजी तालुका में है।

n             प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 9 अक्टूबर 2022 को गुजरात के मोढेरा सूर्य मंदिर में हैरिटेज लाइटिंग का उद्घाटन किया।

n             यह भारत का पहला विरासत स्थल बन गया है जो पूरी तरह से सौर ऊर्जा से संचालित है। मोढेरा सूर्य मंदिर के 3डी प्रोजेक्शन मैपिंग का भी शुभारंभ किया।

n             भारत सरकार ने मई 2020 में ओडिशा में एतिहासिक कोणार्क सूर्य मंदिर और कोणार्क शहर के शत प्रतिशत सोलराइजेशन की योजना का शुभारंभ किया। इस योजना से सौर ऊर्जा के साथ कोणार्क शहर की ऊर्जा संबंधी जरूरतें पूरी होंगी।

n             कोणार्क सूर्य मंदिर को ‘सूर्य नगरी’ के रूप में विकसित करने के प्रधानमंत्री के विजन को आगे ले जाने के उद्देश्य से यह योजना शुरू की गई।

n             कोणार्क सूर्य मंदिर और नालंदा विश्वविद्यालय का प्रतीक दिखाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान दुनिया को भारत की धरोहर और सशक्त इतिहास से अवगत कराया।

 

स्वदेश दर्शन-प्रशाद योजना से जुड़े स्थल

 

स्वदेश दर्शन केंद्र सरकार की सहायता वाली योजना है। पर्यटन मंत्रालय ने अभी तक इस योजना में 76 परियोजनाओं को मंजूरी दी है जिसमें से 64 पूरी हो चुकी हैं। इसके तहत पर्यटन स्थलों को अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस किया जा रहा है। वहीं प्रशाद योजना में 46 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है और 26 नए स्थलों की पहचान की गई है। इसका उद्देश्य देश में चयनित तीर्थ स्थलों का समग्र विकास करना है।

n             पर्यटन मंत्रालय ने अब अपनी स्वदेश दर्शन योजना को स्वदेश दर्शन 2.0 (एसडी 2.0) के रूप में नया स्वरुप दिया है। इसका उद्देश्य पर्यटक और गंतव्य स्थल केंद्रित दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए स्थायी पर्यटन स्थलों को विकसित करना है।

n             पर्यटन मंत्रालय की ‘प्रशाद’ योजना के तहत बिहार के सीतामढ़ी जिले के पुनौरा धाम पर्यटन स्थल को विकास के लिए चिन्हित किया गया है।

n             स्वदेश दर्शन योजना के तहत केंद्र सरकार पूर्वोत्तर, हिमालयी क्षेत्र, जनजातीय क्षेत्र आदि पर अपना ध्यान केंद्रित कर रही है।

 

भारत के सबसे पुराने ज्योतिर्लिंग मंदिर का पुनर्विकास

 

श्री सोमनाथ मंदिर

 

जिन परिस्थितियों में सोमनाथ मंदिर को तबाह किया गया और फिर जिन परिस्थितियों में सरदार वल्‍लभ भाई पटेल के प्रयासों से मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ वो हमारे लिए एक बड़ा संदेश है। आज आजादी के अमृत महोत्सव में हम देश के अतीत से जो सीखना चाहते हैं, सोमनाथ जैसे आस्था और संस्कृति के स्थल उसके अहम केंद्र हैं…...

अलग-अलग राज्यों से, देश और दुनिया के अलग-अलग कोनों से, सोमनाथ मंदिर में दर्शन करने हर साल करीब-करीब एक करोड़ श्रद्धालु आते हैं।

 

n             सर्किट हाउस : गुजरात के सोमनाथ में 21 जनवरी 2022  को नए सर्किट हाउस का उद्घाटन किया गया। सर्किट हाउस के हर कमरे से यात्रियों को समुद्र की लहरें और सोमनाथ का शिखर भी दिखता है।

n             समुद्र दर्शन पथ : सोमनाथ के प्राकृतिक सौंदर्य को ध्यान में रखकर केंद्र सरकार की ‘प्रशाद’ योजना के तहत समुद्र दर्शन पथ बनाया गया। 1.5 किमी लंबा यह समुद्र दर्शन पथ समुद्र के किनारे बनाया गया है।

n             सोमनाथ प्रदर्शनी गैलरी : यह गैलरी मंदिर स्थापत्य की थीम पर बनी है। सोमनाथ मंदिर के खंडित अवशेषों को यहां संजोकर रखा गया है। मंदिर की वास्तुकला, स्थापत्य का महत्व एवं अन्य जानकारी हिंदी व अंग्रेजी भाषा के साथ ब्रेल लिपि में भी दी गई है।

n             प्राचीन सोमनाथ मंदिर : इंदौर की मराठा महारानी मातो श्री अहिल्याबाई होलकर ने 1783 में प्राचीन सोमनाथ मंदिर स्थापित किया था। सोमनाथ पर हो रहे आक्रमणों के दौर में इसी मंदिर में सोमनाथ महादेव की पूजा होती थी। मर्यादित पूजा परिसर और दुर्गम प्रवेश द्वार वाले पुराने मंदिर परिसर का नवनिर्माण कर कुल 1,800 वर्ग मीटर को मंदिर परिसर के क्षेत्र में शामिल किया गया है। मंदिर के प्रवेश मार्ग को सहज बनाया गया है।

n             श्री पार्वती मंदिर : इस मंदिर के लिए आधारशिला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगस्त, 2021 में रखी थी। यहां करीब 30 करोड़ रुपये की लागत से सोमपुरा सलात शैली में मंदिर निर्माण, गर्भगृह और नृत्य मंडप विकास के संकल्प को ट्रस्ट सिद्धी के मार्ग पर ले जा रहा है।

n             30 अक्टूबर, 2023 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में सोमनाथ ट्रस्ट की बैठक हुई जिसमें ट्रस्ट द्वारा पर्यावरण के अनुकूल किए जा रहे उपायों और मंदिर परिसर के लिए किस प्रकार से नवीनतम तकनीक का लाभ उठाया जा सकता है ताकि तीर्थ यात्रा का अनुभव और भी अधिक स्मरणीय बन जाए, इसकी समीक्षा की गई।

 

देवघर (बाबा बैद्यनाथ धाम): मिली हवाई कनेक्टिविटी

 

16800 करोड़ रुपये से अधिक की विकास परियोजनाओं का पीएम मोदी ने जुलाई 2022 को देवघर में उद्घाटन और शिलान्यास किया।

 

n             प्रशाद योजना के तहत झारखंड के देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम में आधुनिक सुविधाओं का विस्तार किया जा रहा है।

n             बाबा बैद्यनाथ धाम से हवाई संपर्क बनाने के लिए 400 करोड़ रुपये की लागत से देवघर हवाई अड्‌डा का उद्घाटन।

n             2,000 तीर्थयात्रियों की क्षमता वाले दो बड़े तीर्थ मंडली भवन और शिवगंगा तालाब का निर्माण।

n             देवघर समेत पूरे झारखंड के मरीजों को बेहतर व आधुनिक इलाज मिले इसके लिए मार्च 2018 में देवघर एम्स का शिलान्यास।

n             पीएम मोदी ने एम्स में इन-पेशेंट विभाग (आईपीडी) और ऑपरेशन थियेटर सुविधाओं की शुरुआत की।

 

400 साल बाद काशी विश्वनाथ धाम का पुनर्विकास

 

विश्वनाथ धाम का पूरा नया परिसर एक भव्य भवन भर नहीं है। यह भारत की सनातन संस्कृति का प्रतीक है। यह आध्यात्मिक आत्मा, भारत की प्राचीनता, परंपरा, ऊर्जा और गतिशीलता का प्रतीक है। यहां आने वाला न केवल आस्था बल्कि अतीत के गौरव को भी महसूस करेगा। प्राचीन की प्रेरणा भविष्य को कैसे दिशा दे रही है, इसके साक्षात दर्शन हम विश्वनाथ धाम परिसर में कर सकते हैं।

 

n             एक दिन में 50,000 से 75,000 श्रद्धालु मंदिर दर्शन कर सकते हैं।

n             अब पहले मां गंगा के दर्शन और स्नान करें और वहां से सीधे विश्वनाथ धाम पहुंच जाएं।

n             विश्वनाथ धाम परियोजना के पूरा होने के बाद बुजुर्गों, दिव्यांगों सहित हर किसी के लिए पहुंचना सुगम हो गया है।

n             यहां 3 यात्री सुविधा केंद्रों में श्रद्धालुओं को अपना सामान सुरक्षित रखने, बैठने और आराम की सुविधा मिल रही है।

 

1.50 लाख करोड़ रुपये खर्च हो रहे कनेक्टिविटी पर

सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने देश भर के महत्वपूर्ण पर्यटन एवं धार्मिक कनेक्टिविटी में सुधार के लिए लगभग 8,544 किलोमीटर लंबाई की 321 राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाएं शुरू की हैं। इन परियोजनाओं की लागत करीब 1.50 लाख करोड़ रुपये है।

 

पहले 3,000 वर्ग फीट था मंदिर का क्षेत्रफल, सालाना करीब 80 हजार लोग आते थे।

 

अब 5 लाख वर्ग फीट क्षेत्रफल हुआ। 7 लाख से अधिक श्रद्धालु पहुंच रहे।

 

300 से ज्यादा इमारतों को प्रोजेक्ट के लिए खरीदा गया। इस दौरान 40 से अधिक मंदिरों की खोज कर उनका जीर्णोद्धार व सौंदर्यीकरण किया गया।

 

भारत की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और भव्य ऐतिहासिक स्थलों को दिखाने के उद्देश्य से नवंबर, 2021 में भारतीय रेल ने ‘भारत गौरव ट्रेन’ नीति जारी की। इसके तहत थीम आधारित पर्यटक सर्किट रेलगाड़ियां चलाई जा रही हैं।

 

हेमकुंड साहिब-रोपवे

 

n             अक्टूबर, 2022 में गोविंदघाट को हेमकुंड साहिब से जोड़ने वाले हेमकुंड साहिब रोपवे परियोजना की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आधारशिला रखी।

n             यह लगभग 12.4 किलोमीटर लंबा होगा। यात्रा में जो एक दिन का समय लगता है, वो सिर्फ 45 मिनट लगेगा।

n             इस रोपवे से हेमकुंड साहिब के विकट रास्तों पर अब पैदल चलने की परेशानी नहीं होगी। यह रोपवे घांघरिया को भी जोड़ेगा जो फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान का प्रवेश द्वार है।

 

n             केदारनाथ और बद्रीनाथ सबसे महत्वपूर्ण हिंदू मंदिरों में से एक हैं। यह क्षेत्र श्रद्धेय सिख तीर्थ स्थलों में से एक - हेमकुंड साहिब के लिए भी जाना जाता है।

 

n             शुरू की जा रही कनेक्टिविटी परियोजनाएं धार्मिक महत्व के स्थानों तक पहुंच को आसान बनाने और बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए प्रधानमंत्री मोदी की प्रतिबद्धता को दर्शाती है।

 

n             यह परिवहन का पर्यावरण अनुकूल साधन होगा जो आवागमन को सुरक्षित बनाएगा। इस रोपवे से धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा जिससे क्षेत्र में आर्थिक विकास को गति मिलेगी।

 

 

गिरनार रोपवे

 

गिरनार पर्वत पर मां अंबे विराजती हैं। यहां गोरखनाथ शिखर, गुरु दत्तात्रेय का शिखर और जैन मंदिर भी है। अब यहां विश्व स्तरीय रोपवे बनने से सबको सुविधा और दर्शन का अवसर मिल रहा है। पहले मंदिर तक जाने में 5-7 घंटे का समय लगता था वो दूरी अब रोपवे से 7-8 मिनट में ही तय हो जाती है। इस नई सुविधा के बाद यहां ज्यादा से ज्यादा श्रद्धालु और पर्यटक आ रहे हैं।

 

n             प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 अक्टूबर, 2020 को गिरनार में रोपवे का उद्घाटन किया। भवनाथ की तलहटी से गिरनार पर्वत पर अंबाजी मंदिर तक रोपवे बनने से यह वैश्विक मानचित्र में अपनी जगह बना रहा है।

n             शुरुआत में इसमें आठ लोगों को ले जाने की क्षमता वाले 25-30 केबिन लगाए गए। रोपवे के साथ 2.3 किलोमीटर की दूरी अब केवल साढ़े सात मिनट में पूरी होती है।

 

2 लाख से ज्यादा लोगों ने शुरुआती कुछ महीने में ही इसका उपयोग किया। रोपवे से गिरनार पर्वत के आसपास के नैसर्गिक सौंदर्य का भी आनंद उठाया जा रहा है।

 

शक्तिपीठ के शहर का पुनर्विकास

 

गुजरात का पावागढ़

 

पावागढ़ में आध्यात्म, इतिहास, प्रकृति, कला-संस्कृति सब कुछ है। यहां एक ओर मां महाकाली का शक्तिपीठ है तो दूसरी ओर जैन मंदिर की धरोहर है। पावागढ़ एक तरह से भारत की ऐतिहासिक विविधता के साथ सर्वधर्म समभाव का केंद्र रहा है। यूनेस्को ने चंपानेर के पुरातत्व स्थल को विश्व धरोहर वर्ल्ड हैरिटेज के रूप में दर्ज किया है। यहां बढ़ रही सुविधाओं ने दर्शन की सुगमता बढ़ाई है जिससे यहां की पहचान और मजबूत हो रही है।

 

n             प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 18 जून 2022 को पंचमहल स्थित पावागढ़ में पुनर्विकसित श्री कालिका माता मंदिर का उद्घाटन किया। पांच सदी और आजादी के 75 साल बाद फहराया गया शिखर ध्वज।

n             यह क्षेत्र के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है और बड़ी संख्या में तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है।

n             मंदिर का पुनर्निर्माण 2 चरणों में किया गया है। इसके पहले चरण का उद्घाटन प्रधानमंत्री ने अप्रैल 2022 में किया था।

n             मंदिर के आधार का विस्तार और तीन स्तरों पर ‘परिसर’, स्ट्रीट लाइट, सीसीटीवी प्रणाली जैसी सुविधाएं शामिल हैं।

 

सांझी विरासत और जनजातीय संग्रहालय

n             जनजातीय लोगों द्वारा देश के स्वतंत्रता संग्राम में दिए गए बलिदान और योगदान को उचित मान्यता देने के लिए प्रधानमंत्री मोदी के निर्देश पर जनजातीय कार्य मंत्रालय ‘जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों के संग्रहालय’ स्थापित कर रहा है।

n             आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मानित करने वाला पहला संग्रहालय- भगवान बिरसा मुंडा संग्रहालय, रांची। इसके अलावा 9 अन्य जगहों पर जनजातीय संग्रहालय का निर्माण।

n             आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों को समर्पित जनजातीय गौरव दिवस।

n             राष्ट्रपति भवन संग्रहालय- फेज-2, नई दिल्ली।

n             कर्ताव्य पथ पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा का अनावरण- लंबे समय से चली आ रही मांग पूरी। सुभाष चंद्र बोस संग्रहालय, दिल्ली।

n             क्रांति मंदिर- स्वतंत्रता सेनानियों को समर्पित संग्रहालय।

n             जलियांवाला बाग स्मारक परिसर का जीर्णोद्धार।

n             भारतीय सिनेमा का राष्ट्रीय संग्रहालय, मुंबई।

n             सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों को समर्पित पहला संग्रहालय- प्रधानमंत्री संग्रहालय, नई दिल्ली।

n             2014 से पहले केवल 13 की तुलना में 2014 के बाद से अब तक 344 से अधिक पुरावशेष विदेशों से वापस लाई गईं।

 

संदेश देती महापुरुषों की प्रतिमाएं

 

भारतीयों में मूर्ति को लेकर अटूट आस्था और श्रद्धा है। यही वजह है कि संस्कृति, धर्म, विरासत से नई पीढ़ी को रूबरू कराने और अपनी विरासत पर गर्व का संदेश देने के लिए देश में महापुरुषों, धर्म गुरुओं की ऊंची प्रतिमाएं स्थापित की जा रही हैं।

 

स्टैच्यू ऑफ यूनिटी: दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा

n             सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती 31 अक्टूबर को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत हुई।

n             स्टैच्यू ऑफ यूनिटी, गुजरात के केवड़िया में बनी भारत के एकीकरण के शिल्पी सरदार वल्लभ भाई पटेल की 182 मीटर की प्रतिमा दुनिया में सबसे ऊंची है। इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 31 अक्टूबर 2018 को किया था।

n             केवड़िया और एकता नगर आज एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो चुका है। पिछले पांच साल में 1.5 करोड़ से अधिक पर्यटक आए हैं।

स्टैच्यू ऑफ इक्वैलिटी: दुनिया की सबसे ऊंची बैठी हुई प्रतिमा

n             हैदराबाद में दुनिया की सबसे ऊंची 216 फीट की बैठी हुई यह प्रतिमा 11वीं सदी के वैष्णव संत श्रीरामानुजाचार्य की स्मृति में स्थापित की गई है। उन्होंने धार्मिक निष्ठा, जाति और पंथ सहित जीवन के सभी क्षेत्रों में समानता के विचार को बढ़ाया था। पंचधातु से बनी इस प्रतिमा का अनावरण प्रधानमंत्री मोदी ने 5 फरवरी, 2022 को किया।

स्टैच्यू ऑफ प्रोस्पेरिटी

n             बेंगलुरु के संस्थापक नाडप्रभु केम्पेगौडा की 108 फीट ऊंची कांस्य प्रतिमा का अनावरण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 11 नवंबर, 2022 को किया।

 

सुहेलदेव स्मारक

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में फरवरी, 2021 में सुहेलदेव स्मारक का शिलान्यास किया। भारतीयता की रक्षा में सुहेलदेव के योगदान को भी याद किया। इस स्मारक में प्रतिमा भी लगेगी।

 

संत तुकाराम मंदिर

पुणे के देहू में जगद्गुरु श्री संत तुकाराम महाराज के मंदिर का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया। श्रीसंत तुकाराम महाराज के निधन के बाद 36 चोटियों की पत्थर की चिनाई से एक शिला मंदिर बनाया गया था लेकिन इसका संचालन मंदिर के रूप में नहीं किया जा रहा था। इसमें संत तुकाराम की मूर्ति भी है।

 

विट्ठल रुक्मिणी मंदिर

 

n             प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 जून 2022 को महाराष्ट्र के देहु में विट्‌ठल रूक्मिणी मंदिर में पटिटका का अनावरण किया।

n             मंदिर तक श्रद्धालुओं को पहुंचने में किसी प्रकार की दिक्कत न हो इसलिए मंदिर तक चार लेन कनेक्टिविटी की व्यवस्था केंद्र सरकार की ओर से की गई।

n             केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने 24 जुलाई 2022 को नागपुर में 720 करोड़ रुपये की लागत से 28.88 किमी लंबे राष्ट्रीय राजमार्ग 547-ई के सावनेर-धापेवाड़ा-गौंडखैरी खंड का उद्घाटन किया।

n             इस खंड को चार लेन का बनाने से तीर्थयात्रियों को धापेवाड़ा में

विट्ठल-रुक्मिणी मंदिर और अदासा के प्रसिद्ध गणेश मंदिर से बेहतर कनेक्टिविटी होगी।

 

स्वर्णिम भारत की साक्षी अमृत वाटिका

 

8500 से अधिक अमृत कलशों के साथ 31 अक्टूबर को देशभर से 20 हजार से अधिक प्रतिनिधि दिल्ली पहुंचे।

 

n             राष्ट्रभक्ति की भावना जागृत करने वाले ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ कार्यक्रम का समापन ‘मेरी माटी, मेरा देश’ के साथ 31 अक्टूबर 2023 को किया गया।

n             यह अभियान माटी को नमन, वीरों का वंदन के साथ भारत की मिट्टी और वीरता का मिलाजुला उत्सव रहा। इसमें तैयार होने वाली अमृत वाटिका युवा पीढ़ी को प्रेरित करेगी।

n             अमृत कलश की मिट्टी से अमृत वाटिका का निर्माण विकसित भारत के सपने को साकार करने में अमृत काल के आगामी 25 वर्षों में पंच-प्रणों की पूर्ति करेगी।

n             देशभर में वसुधा वंदन थीम के अंतर्गत 23.6 करोड़ से अधिक स्वदेशी पौधे लगाए गए। 2.63 लाख अमृत वाटिकाएं बनाई गई।

 

पीएम मोदी के साथ वैश्विक नेताओं की भारत यात्रा

 

n             फ्रांस के राष्ट्रपति और जापान के प्रधानमंत्री ने वाराणसी की प्राचीन सांस्कृतिक विरासत का आनंद उठाया।

n             अमेरिका और चीन के राष्ट्रपति के साथ-साथ ब्रिटेन, इजरायल, जापान के प्रधानमंत्री ने साबरमती आश्रम की शांति को महसूस किया। चीनी राष्ट्रपति ने तो साबरमती आश्रम की अपनी यात्रा को अपने जीवन का सबसे यादगार पल कहा था।

n             ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के पीएम ने अक्षरधाम मंदिर में दर्शन किया।

n             दक्षिण कोरिया की फर्स्ट लेडी अयोध्या पहुंचीं।

 

विदेशों में बन रहे मंदिर

 

n             वर्ष 2019 में मनामा और अबू धाबी में भगवान श्रीकृष्ण श्रीनाथजी के पुनर्निर्माण के लिए बड़ी राशि देने का ऐलान किया गया।

n             वर्ष 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अबू धाबी में मंदिर की आधारशिला रखी।

n             मंदिरों की उपेक्षा का दौर समाप्त, अब मंदिरों को विश्व स्तर पर संरक्षित करने के लिए सरकार प्रतिबद्ध। 

n             पीएम मोदी ने कंबोडिया और अन्य देशों में भारतीय मंदिरों के जीर्णोद्धार की दिशा में भी काम किया है।

n             प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय विदेश मंत्रालय ने सांस्कृतिक विरासत के जीर्णोद्धार, नवीनीकरण के लिए अलग विभाग बनाया है।

 

n             भारतीय संस्कृति के प्रसार की आवश्यकता, अपनी संस्कृति को बढ़ावा देने और प्रस्तुत करने के लिए इसे बाकी दुनिया में ले जाना होगा।

 

केंद्र सरकार की सांस्कृतिक कूटनीति पूरी दुनिया के फायदे के लिए हमारी समृद्ध परंपराओं को बनाने, उनके पुनर्निर्माण और पुनर्स्थापित करने पर केंद्रित है।

 

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श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा  बना राष्ट्र-दुनिया का उत्सव

 

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व्यक्ति विशेष - कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न सम्मान

 

राम राज में ‘बिहार के जननायक’ को राष्ट्र का सम्मान

 

वर्ष 2024 की जनवरी में नए भारत के अभ्युदय का इससे सुखद पल नहीं हो सकता कि 22 जनवरी को अयोध्या में श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा ने राम राज की अनुभूति कराई तो अगले ही दिन 23 जनवरी को जननायक कर्पूरी ठाकुर जी को राष्ट्र ने भारत रत्न सम्मान दिया। पिछड़े और वंचितों के उत्थान के लिए कर्पूरी जी की अटूट प्रतिबद्धता और दूरदर्शी नेतृत्व ने बिहार के साथ-साथ भारत के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य पर अमिट छाप छोड़ी है। यह सम्मान इसलिए भी विशेष बन गया है क्योंकि 24 जनवरी को उनकी 100वीं जन्म जयंती और देश इस वर्ष अपना 75वां गणतंत्र दिवस मना रहा है। ऐसे पावन समय में जननायक को भारत रत्न सम्मान सही अर्थों में राष्ट्र का सम्मान बन गया है। कर्पूरी ठाकुर जी को मिले सम्मान से आह्लादित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय समाज और राजनीति में उनकी अविस्मरणीय छाप को अपने शब्दों में उकेरा है… ...

 

हमारे जीवन पर कई लोगों के व्यक्तित्व का प्रभाव रहता है। जिन लोगों से हम मिलते हैं, जिनके संपर्क में रहते हैं, उनकी बातों का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। कुछ ऐसे व्यक्ति भी होते हैं जिनके बारे में सुनकर ही आप उनसे प्रभावित हो जाते हैं। मेरे लिए ऐसे ही रहे हैं जननायक कर्पूरी ठाकुर।

आज (24 जनवरी) कर्पूरी बाबू की 100वीं जन्म-जयंती है। मुझे कर्पूरी जी से कभी मिलने का अवसर तो नहीं मिला, लेकिन उनके साथ बेहद करीब से काम करने वाले कैलाशपति मिश्र जी से मैंने उनके बारे में बहुत कुछ सुना है। सामाजिक न्याय के लिए कर्पूरी बाबू ने जो प्रयास किए, उससे करोड़ों लोगों के जीवन में बड़ा बदलाव आया। उनका संबंध नाई समाज, यानि समाज के अति पिछड़े वर्ग से था। अनेक चुनौतियों को पार करते हुए उन्होंने कई उपलब्धियों को हासिल किया और जीवनभर समाज के उत्थान के लिए काम करते रहे।

जननायक कर्पूरी ठाकुर जी का पूरा जीवन सादगी और सामाजिक न्याय के लिए समर्पित रहा। वे अपनी अंतिम सांस तक सरल जीवनशैली और विनम्र स्वभाव के चलते आम लोगों से गहराई से जुड़े रहे। उनसे जुड़े ऐसे कई किस्से हैं, जो उनकी सादगी की मिसाल हैं।

उनके साथ काम करने वाले लोग याद करते हैं कि कैसे वे इस बात पर जोर देते थे कि उनके किसी भी व्यक्तिगत कार्य में सरकार का एक पैसा भी इस्तेमाल ना हो। ऐसा ही एक वाकया बिहार में उनके सीएम रहने के दौरान हुआ। तब राज्य के नेताओं के लिए एक कॉलोनी बनाने का निर्णय हुआ था, लेकिन उन्होंने अपने लिए कोई जमीन नहीं ली। जब भी उनसे पूछा जाता कि आप जमीन क्यों नहीं ले रहे हैं, तो वे बस विनम्रता से हाथ जोड़ लेते। 1988 में जब उनका निधन हुआ तो कई नेता श्रद्धांजलि देने उनके गांव गए। कर्पूरी जी के घर की हालत देखकर उनकी आंखों में आंसू आ गए कि इतने ऊंचे पद पर रहे व्यक्ति का घर इतना साधारण कैसे हो सकता है!

कर्पूरी बाबू की सादगी का एक और लोकप्रिय किस्सा 1977 का है, जब वे बिहार के सीएम बने थे। तब केंद्र और बिहार में जनता सरकार सत्ता में थी। उस समय जनता पार्टी के नेता लोकनायक जयप्रकाश नारायण यानि जेपी के जन्मदिन के लिए कई नेता पटना में इकट्ठा हुए। उसमें शामिल मुख्यमंत्री कर्पूरी बाबू का कुर्ता फटा हुआ था। ऐसे में चंद्रशेखर जी ने अपने अनूठे अंदाज में लोगों से कुछ पैसे दान करने की अपील की, ताकि कर्पूरी जी नया कुर्ता खरीद सकें। लेकिन कर्पूरी जी तो कर्पूरी जी थे। उन्होंने इसमें भी एक मिसाल कायम कर दी। उन्होंने पैसा तो स्वीकार कर लिया, लेकिन उसे मुख्यमंत्री राहत कोष में दान कर दिया।

सामाजिक न्याय तो जननायक कर्पूरी ठाकुर जी के मन में

रचा-बसा था। उनके राजनीतिक जीवन को एक ऐसे समाज के निर्माण के प्रयासों के लिए जाना जाता है, जहां सभी लोगों तक संसाधनों का समान रूप से वितरण हो और सामाजिक हैसियत की परवाह किए बिना उन्हें अवसरों का लाभ मिले। उनके प्रयासों का उद्देश्य भारतीय समाज में पैठ बना चुकी कई असमानताओं को दूर करना भी था।

अपने आदर्शों के लिए कर्पूरी ठाकुर जी की प्रतिबद्धता ऐसी थी कि उस कालखंड में भी जब सब ओर कांग्रेस का राज था, उन्होंने कांग्रेस विरोधी लाइन पर चलने का फैसला किया। क्योंकि उन्हें काफी पहले ही इस बात का अंदाजा हो गया था कि कांग्रेस अपने बुनियादी सिद्धांतों से भटक गई है।

कर्पूरी ठाकुर जी की चुनावी यात्रा 1950 के दशक के प्रारंभिक वर्षों में शुरू हुई और यहीं से वे राज्य के सदन में एक ताकतवर नेता के रूप में उभरे। वे श्रमिक वर्ग, मजदूर, छोटे किसान और युवाओं के संघर्ष की सशक्त आवाज बने। शिक्षा एक ऐसा विषय था, जो कर्पूरी जी के हृदय के सबसे करीब था। उन्होंने अपने पूरे राजनीतिक जीवन में गरीबों को शिक्षा मुहैया कराने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। वे स्थानीय भाषाओं में शिक्षा देने के बहुत बड़े पैरोकार थे, ताकि गांव और छोटे शहरों के लोग भी अच्छी शिक्षा प्राप्त करें और सफलता की सीढ़ियां चढ़ें। मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने बुजुर्ग नागरिकों के कल्याण के लिए भी कई अहम कदम उठाए।

Democracy, Debate और Discussion तो कर्पूरी जी के व्यक्तित्व का अभिन्न हिस्सा था। लोकतंत्र के लिए उनका समर्पण भाव, भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान ही दिख गया था, जिसमें उन्होंने अपने-आप को झोंक दिया। उन्होंने देश पर जबरन थोपे गए आपातकाल का भी पुरजोर विरोध किया था। जेपी, डॉ. लोहिया और चरण सिंह जी जैसी विभूतियां भी उनसे काफी प्रभावित हुई थीं।

समाज के पिछड़े और वंचित वर्गों को सशक्त बनाने के लिए जननायक कर्पूरी ठाकुर जी ने एक ठोस कार्य योजना बनाई थी। यह सही तरीके से आगे बढ़े, इसके लिए पूरा एक तंत्र तैयार किया था। यह उनके सबसे प्रमुख योगदानों में से एक है। उन्हें उम्मीद थी कि एक ना एक दिन इन वर्गों को भी वो प्रतिनिधित्व और अवसर जरूर दिए जाएंगे, जिनके वे हकदार थे। हालांकि उनके इस कदम का काफी विरोध हुआ, लेकिन वे किसी भी दबाव के आगे झुके नहीं। उनके नेतृत्व में ऐसी नीतियों को लागू किया गया, जिनसे एक ऐसे समावेशी समाज की मजबूत नींव पड़ी, जहां किसी के जन्म से उसके भाग्य का निर्धारण नहीं होता हो। वे समाज के सबसे पिछड़े वर्ग से थे, लेकिन काम उन्होंने सभी वर्गों के लिए किया। उनमें किसी के प्रति रत्तीभर भी कड़वाहट नहीं थी और यही तो उन्हें महानता की श्रेणी में ले आता है।

हमारी सरकार निरंतर जननायक कर्पूरी ठाकुर जी से प्रेरणा लेते हुए काम कर रही है। यह हमारी नीति और योजनाओं में भी दिखाई देता है, जिससे देशभर में सकारात्मक बदलाव आया है। भारतीय राजनीति की सबसे बड़ी त्रासदी यह रही थी कि कर्पूरी जी जैसे कुछ नेताओं को छोड़कर सामाजिक न्याय की बात बस एक राजनीतिक नारा बनकर रह गई थी। कर्पूरी जी के विजन से प्रेरित होकर हमने इसे एक प्रभावी गवर्नेंस मॉडल के रूप में लागू किया। मैं विश्वास और गर्व के साथ कह सकता हूं कि भारत के 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकालने की उपलब्धि पर आज जननायक कर्पूरी जी जरूर गौरवान्वित होते। गरीबी से बाहर निकलने वालों में समाज के सबसे पिछड़े तबके के लोग सबसे ज्यादा हैं, जो आजादी के 70 साल बाद भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित थे।

हम आज सैचुरेशन के लिए प्रयास कर रहे हैं, ताकि प्रत्येक योजना का लाभ, शत प्रतिशत लाभार्थियों को मिले। इस दिशा में हमारे प्रयास सामाजिक न्याय के प्रति सरकार के संकल्प को दिखाते हैं। आज जब मुद्रा लोन से OBC, SC और ST समुदाय के लोग उद्यमी बन रहे हैं, तो यह कर्पूरी ठाकुर जी के आर्थिक स्वतंत्रता के सपनों को पूरा कर रहा है। इसी तरह यह हमारी सरकार है, जिसने SC, ST और OBC Reservation का दायरा बढ़ाया है। हमें ओबीसी आयोग (दुख की बात है कि कांग्रेस ने इसका विरोध किया था) की स्थापना करने का भी अवसर प्राप्त हुआ, जो कि कर्पूरी जी के दिखाए रास्ते पर काम कर रहा है। कुछ समय पहले शुरू की गई पीएम-विश्वकर्मा योजना भी देश में ओबीसी समुदाय के करोड़ों लोगों के लिए समृद्धि के नए रास्ते बनाएगी।

पिछड़े वर्ग से ताल्लुक रखने वाले एक व्यक्ति के रूप में मुझे जननायक कर्पूरी ठाकुर जी के जीवन से बहुत कुछ सीखने को मिला है। मेरे जैसे अनेक लोगों के जीवन में कर्पूरी बाबू का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष योगदान रहा है। इसके लिए मैं उनका सदैव आभारी रहूंगा। दुर्भाग्यवश, हमने कर्पूरी ठाकुर जी को 64 वर्ष की आयु में ही खो दिया। हमने उन्हें तब खोया, जब देश को उनकी सबसे अधिक जरूरत थी। आज भले ही वे हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन जन-कल्याण के अपने कार्यों की वजह से करोड़ों देशवासियों के दिल और दिमाग में जीवित हैं। वे एक सच्चे जननायक थे।

प्रधानमंत्री का आलेख ऑनलाइन पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें। https://www.narendramodi.in/hi/a-tribute-to-jan-nayak-karpoori-thakur-ji-578509

 

 

स्‍वतंत्रता सेनानी, शिक्षक और राजनीतिज्ञ कर्पूरी ठाकुर को (मरणोपरांत) भारत रत्न से सम्मानित करने की घोषणा की गई है। राष्‍ट्रपति भवन से जारी एक विज्ञप्ति में यह जानकारी दी गई।

 

मुझे इस बात की बहुत प्रसन्नता हो रही है कि भारत सरकार ने समाजिक न्याय के पुरोधा महान जननायक कर्पूरी ठाकुर जी को भारत रत्न से सम्मानित करने का निर्णय लिया है। उनकी जन्म-शताब्दी के अवसर पर यह निर्णय देशवासियों को गौरवान्वित करने वाला है। पिछड़ों और वंचितों के उत्थान के लिए कर्पूरी जी की अटूट प्रतिबद्धता और दूरदर्शी नेतृत्व ने भारत के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य पर अमिट छाप छोड़ी है। यह भारत रत्न न केवल उनके अतुलनीय योगदान का विनम्र सम्मान है, बल्कि इससे समाज में समरसता को और बढ़ावा मिलेगा।

नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री

 

मैं जननायक कर्पूरी ठाकुर जी को उनकी जन्म-शताब्दी पर नमन करता हूं। इस विशेष अवसर पर हमारी सरकार को उन्हें भारत रत्न से सम्मानित करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। मैंने हमारे समाज और राजनीति पर उनके अद्वितीय प्रभाव पर अपने विचारों को कलमबद्ध किया है। देशभर के मेरे परिवारजनों की ओर से जननायक कर्पूरी ठाकुर जी को उनकी जन्म-शताब्दी पर मेरी आदरपूर्ण श्रद्धांजलि।

नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री

 

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केंद्रीय मंत्रिमंडल के निर्णय

 

‘पृथ्वी विज्ञान (पृथ्वी)’ योजना को मंजूरी

रेलवे में शून्य उत्सर्जन के उद्देश्य से होगा समझौता

 

केंद्र सरकार की प्रतिबद्धता न केवल पृथ्वी की समझ बढ़ाने की है बल्कि इससे जुड़े ज्ञान को सामाजिक, पर्यावरणीय और आर्थिक लाभों के लिए इस्तेमाल करने की भी है। इसी कड़ी में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने परिवर्तनकारी ‘पृथ्वी विज्ञान (पृथ्वी)’ योजना को मंजूरी दी है जो उन्नत पृथ्वी प्रणाली विज्ञान की दिशा में भारत की महत्वपूर्ण प्रगति का प्रतीक है। रेलवे क्षेत्र में ज्ञान का अदान-प्रदान करने के लिए एक समझौता ज्ञापन और अयोध्या हवाई अड्‌डा को अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्‌डा के रूप में मंजूरी दी। साथ ही मंत्रिमंडल ने कई अन्य महत्वपूर्ण प्रस्तावों को भी दी मंजूरी…...

 

निर्णय : केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की व्यापक योजना ‘पृथ्वी विज्ञान (पृथ्वी)’ को मंजूरी दी, योजना की कुल लागत 4,797 करोड़ रुपये है।

प्रभाव : व्यापक पृथ्वी योजना के प्रमुख उद्देश्य हैं- पृथ्वी प्रणाली और परिवर्तन के महत्वपूर्ण संकेतों को रिकॉर्ड करने के लिए वायुमंडल, महासागर, भूमंडल, क्रायोस्फीयर और ठोस पृथ्वी का दीर्घकालिक अवलोकन।

nमौसम, महासागर और जलवायु खतरों को समझने और भविष्यवाणी करने तथा जलवायु परिवर्तन के विज्ञान को समझने के लिए प्रणालियों का विकास।

nनई घटनाओं और संसाधनों की खोज करने की दिशा में पृथ्वी के ध्रुवीय और उच्च समुद्री क्षेत्रों की खोज।

nसामाजिक अनुप्रयोगों की खातिर समुद्री संसाधनों की खोज के लिए प्रौद्योगिकी का विकास और संसाधनों का सतत उपयोग।

nपृथ्वी प्रणाली विज्ञान से प्राप्त ज्ञान और अंतर्दृष्टि को सामाजिक, पर्यावरणीय और आर्थिक लाभ के लिए सेवाओं के रूप में बदलना।

निर्णय : मिशन शून्‍य कार्बन उत्सर्जन प्राप्त करने के उद्देश्‍य से भारतीय रेलवे के सहयोग के लिए भारत और यूनाइटेड स्‍टेट एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट के बीच एक समझौता ज्ञापन को मंजूरी।

प्रभाव : भारतीय रेलवे को 2030 तक मिशन नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन प्राप्त करने में सहयोग मिलेगा। इससे भारतीय रेलवे को डीजल, कोयला जैसे आयातित ईंधन पर निर्भरता कम करने में मदद मिलेगी। नवीकरणीय ऊर्जा संयंत्रों से देश में आरई प्रौद्योगिकी के प्रोत्साहन, स्थानीय इकोसिस्‍टम के विकास में मदद मिलेगी।

निर्णय : अयोध्या हवाई अड्डे को अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा घोषित करने और इसका नाम ‘महर्षि वाल्मीकि अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, अयोध्याधाम’ रखने के प्रस्ताव को मंजूरी।

प्रभाव : यह अयोध्या की आर्थिक संभावनाओं को विस्तार देने, वैश्विक पर्यटक एवं तीर्थयात्रियों के लिए नए द्वार खोलने में महत्वपूर्ण है। हवाई अड्‌डा का नामकरण महर्षि वाल्मीकि के प्रति श्रद्धांजलि है।

निर्णय :  हाइड्रोकार्बन क्षेत्र में सहयोग पर भारत और गुयाना के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने की स्‍वीकृति।

प्रभाव : गुयाना के साथ हाइड्रोकार्बन क्षेत्र में सहयोग के लिए समझौता से द्विपक्षीय व्यापार में वृद्धि, निवेश में बढ़ावा और कच्चे तेल के स्रोत में विविधता लाने में मदद मिलेगी। इससे देश की ऊर्जा और आपूर्ति सुरक्षा में वृद्धि होगी।

निर्णय : एक संयुक्त लघु उपग्रह के विकास में सहयोग से संबंधित भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन और मॉरीशस रिसर्च एंड इनोवेशन काउंसिल के बीच हुए समझौता ज्ञापन को मंजूरी।

प्रभाव : यह समझौता ज्ञापन एक संयुक्त उपग्रह के विकास के साथ एमआरआईसी के ग्राउंड स्टेशन के उपयोग में इसरो और एमआरआईसी के बीच सहयोग की एक रूपरेखा को स्थापित करने में मदद करेगा। n

 

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राष्ट्र - सबसे लंबा पुल

 

यात्रा में सुविधा का साधन

भारत का सबसे लंबा पुल ‘अटल सेतु’

 

शिलान्यास से उद्घाटन तक समयबद्ध इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट को पूरा करने की संस्कृति अब भारत में पैदा हुई है। शहरी परिवहन इंफ्रास्ट्रक्चर और कनेक्टिविटी मजबूत कर नागरिकों का जीवन सुगम करने का विजन रखने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई मौके पर कहते हैं कि मेरी कोशिश रहती है कि मैं जिस प्रोजेक्ट का शिलान्यास करूं, उसका उद्घाटन भी करूं। इसी कार्य संस्कृति के अनुरूप महाराष्ट्र में देश के सबसे लंबे ‘अटल बिहारी वाजपेयी सेवारी-न्हावा शेवा अटल सेतु’ सहित 30,500 करोड़ रुपये की परियोजनाओं का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12 जनवरी को उद्घाटन और शिलान्यास किया। साथ में 27वें युवा महोत्सव का भी किया उद्घाटन...

 

आजादी के बाद महाराष्ट्र के औद्योगिक विकास ने भारत के औद्योगिक विकास को निरंतर गति दी है। इसलिए केंद्र सरकार महाराष्ट्र में इंफ्रास्ट्रक्चर पर अभूतपूर्व निवेश कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले छह महीने में 5वीं बार महाराष्ट्र के दौरे पर पहुंचे, मुंबई ट्रांसहार्बर लिंक (एमटीएचएल) यानी ‘अटल बिहारी वाजपेयी सेवारी-न्हावा शेवा अटल सेतु’ का शुभारंभ के साथ कई सौगातें दीं। वहीं फोटो गैलरी और अटल सेतु पर प्रदर्शित मॉडल का अवलोकन भी किया। दिसंबर 2016 में पीएम मोदी ने ही इस अटल सेतु का शिलान्यास किया था। पीएम मोदी का मानना है कि जब जीवन की गुणवत्ता सुधरती है तो उस शहर का विकास और तेजी से होता है।

 

21.8 किमी लंबा और 6-लेन वाला यह पुल 16.5 किमी समुद्र के ऊपर और बाकी भूतल पर बना है जो मुंबई को नवी मुंबई की कनेक्टिविटी आसान करेगा।

 

अटल सेतु से दो घंटे की दूरी 15 मिनट में सिमटी

n             यह भारत का सबसे लंबा पुल है जो सबसे लंबा समुद्री पुल भी है।

n             जब अटल सेतु नहीं था तब मुंबई से नवी मुंबई की दूरी तय करने में करीब 2 घंटे लगते थे, अब सिर्फ 15 मिनट लगेंगे।

n             हर दिन 70 हजार से अधिक गाड़ियों का आवागमन हो सकता है। 100 किमी की रफ्तार से गाड़ियां दौड़ सकती हैं।

n             नवी मुंबई के लिए यह सेतु लाइफ लाइन का काम करेगा।

n             नए पुल से मुंबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा और नवी मुंबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा को तेज कनेक्टिविटी मिली है।

n             मुंबई से पुणे, गोवा और दक्षिण भारत की यात्रा में लगने वाला समय अब बहुत कम हो जाएगा।

n             इस नए पुल से मुंबई बंदरगाह और जवाहरलाल नेहरू बंदरगाह के बीच कनेक्टिविटी बेहतर हो गई है।

n             अटल सेतु का निर्माण 17,840 करोड़ रुपये से अधिक की लागत से किया गया।

n             आधुनिक इंजीनियरिंग तकनीक, पर्यावरण के अनुकूल सिद्धांतों को ध्यान में रखकर इसका डिजाइन किया गया।

 

दुनिया के सबसे बड़े समुद्री पुलों में से एक अटल सेतु देश को मिला है। यह हमारे उस संकल्प का भी प्रमाण है कि भारत के विकास के लिए हम समंदर से भी टकरा सकते हैं, लहरों को भी चीर सकते हैं।

- नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री

 

पुल पर भूकंप-साइक्लोन का नहीं होगा असर

n             समुद्र तल पर बना हुआ विश्व का 12वां सबसे लंबा पुल।

n इस पुल का निर्माण उस सामग्री से किया गया है जिससे परमाणु रियेक्टर बनाया जाता है ताकि लीकेज न हो। एपॉक्सी स्ट्रेंस नाम की सामग्री इस पुल को अभूतपूर्व मजबूती देताी है।

n             यह आपदारोधी पुल है जिस पर भूकंप, हाई-टाइड, साइक्लोन का कोई असर नहीं होगा।

n             इस पुल के निर्माण में एफिल टॉवर की तुलना में 17 गुना, हावड़ा पुल से चार गुना अधिक 1.77 लाख मीट्रिक टन स्टील का इस्तेमाल किया गया है।

n             कंक्रीट की बात करें तो स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी से छह गुना कंक्रीट लगाया गया है। इसमें 5.05 लाख मिट्रिक टन सीमेंट इस्तेमाल हुआ है।

n             इस पुल पर सुरक्षा के लिए एआई वाले 190 सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं।

 

नवी मुंबई में 12,700 करोड़ रुपये से अधिक लागत की कई विकास परियोजनाओं

का उद्घाटन और शिलान्यास किया गया। जिसमें यह परियोजनाएं शामिल:-

n             ईस्टर्न फ्रीवे के ऑरेंज गेट को मरीन ड्राइव से जोड़ने वाली भूमिगत सड़क सुरंग की आधारशिला रखी। यह 9.2 किलोमीटर लंबी सुरंग 8,700 करोड़ रुपये से अधिक की लागत से बनेगी। यह न सिर्फ मुंबई के लिए कनेक्टिविटी का नया इंफ्रास्ट्रक्चर होगा बल्कि ऑरेंज गेट और मरीन ड्राइव के बीच यात्रा में लगने वाले समय को भी कम करेगा।

n             सूर्या क्षेत्रीय थोक पेयजल परियोजना का पहला चरण राष्ट्र को समर्पित जो 1,975 करोड़ रुपये से अधिक की लागत से विकसित की गई। यह पालघर और ठाणे जिले को पेयजल आपूर्ति प्रदान करेगी, करीब 14 लाख लोग लाभांवित होंगे।

n             करीब 2,000 करोड़ रुपये की रेल परियोजनाएं राष्ट्र को समर्पित जिसमें 'उरण-खारकोपर रेलवे लाइन का चरण 2' शामिल है। यह नवी मुंबई से कनेक्टिविटी बढ़ाएगा।

n             उरण रेलवे स्टेशन से खारकोपर तक चलने वाली ईएमयू ट्रेन को भी हरी झंडी दिखाई। ठाणे-वाशी/पनवेल ट्रांस-हार्बर लाइन पर एक नया उपनगरीय स्टेशन 'दीघा गांव' के साथ खार रोड एवं गोरेगांव रेलवे स्टेशन के बीच नई छठवीं लाइन भी राष्ट्र को समर्पित की गई।

n             सांताक्रूज इलेक्ट्रॉनिक एक्सपोर्ट प्रोसेसिंग जोन- स्पेशल इकोनॉमिक जोन (एसईईपीजेड एसईजेड) में रत्न और आभूषण क्षेत्र के लिए मेगा कॉमन फैसिलिटेशन सेंटर 'भारत रत्नम' का उद्घाटन किया, जो 3डी मैटल प्रिंटिंग सहित विश्व में उपलब्ध सर्वोत्तम मशीनों में से एक है। यहां प्रशिक्षण स्कूल भी स्थापित होगा।

n             नमो महिला सशक्तीकरण अभियान का शुभारंभ किया जिसका उद्देश्य कौशल विकास प्रशिक्षण और उद्यमिता विकास के द्वारा महाराष्ट्र राज्य में महिलाओं को अनुभव प्रदान करके सशक्त बनाना है। n

 

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राष्ट्र - वाइब्रेंट गुजरात

 

आईडिया और इमैजिनेशन का वट वृक्ष ‘वाइब्रेंट गुजरात’

 

गुजरात में 20 वर्ष पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बीज बोया था जो अब विशाल और वृहद वाइब्रेंट गुजरात की शक्ल ले चुका है। ग्लोबल वाइब्रेंट गुजरात सम्मेलन आईडिया और इमैजिनेशन का हब बन गया है। भारत ही नहीं, विश्व के कई देशों से राष्ट्राध्यक्ष और वहां के बड़े-बड़े उद्योगपति इस सम्मेलन में हिस्सा ले रहे हैं। इसका लाभ न सिर्फ गुजरात या भारत को बल्कि विश्व के एक बड़े हिस्से को मिल रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 जनवरी को गांधीनगर में तीन दिवसीय 10वें वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल समिट 2024 का किया उद्घाटन…...

 

वाइब्रेंट गुजरात की सफलता के पीछे कोई खास वजह नहीं है। इसकी सफलता में आईडिया, इमैजिनेशन और इम्प्लिमेंटेशन जैसे मुख्य कारक शामिल हैं। यह ऐसा कांसेप्ट था जिसके बारे में भारत में भी कम लोगों ने ही सुना था लेकिन वाइब्रेंट गुजरात की सफलता गुजरात के साथ देश के कई राज्यों तक पहुंची। जब वर्ष 2003 में वाइब्रेंट गुजरात की शुरुआत हुई थी उस समय बहुत कम प्रतिभागियों और प्रतिनिधियों ने इसमें भाग लिया था। समय के साथ इस सम्मेलन का दायरा इतना बढ़ा कि आज 135 से अधिक देशों के 40 हजार से ज्यादा प्रतिभागी इसमें शामिल हुए।

बीते 20 वर्षों में इस समिट ने नए विचारों को प्लेटफॉर्म दिया है। इसने इन्वेस्टमेंट और रिटर्न के लिए नए गेटवे बनाए हैं। वर्ष 2024 में वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल समिट की थीम-गेटवे टू द फ्यूचर है। 21वीं सदी की दुनिया का फ्यूचर हमारे साझा प्रयासों से ही उज्ज्वल बनेगा। भारत ने जी-20 अध्यक्षता के दौरान भी ग्लोबल फ्यूचर के लिए एक रोडमैप दिया है। वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल समिट के इस एडिशन में भी इस विजन को और आगे बढ़ाया गया। भारत, आई-टू-यू-टू और दूसरे मल्टीलैटरल ऑर्गेनाइजेशन के साथ पार्टनरशिप लगातार मजबूत कर रहा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रपति शेख मोहम्मद बिन जाएद का इस आयोजन में शामिल होना भारत के लिए खुशी की बात है। यह भारत और यूएई के दिनों-दिन मजबूत और आत्मीय होते संबंधों का प्रतीक है। भारत और यूएई ने फूड पार्क के विकास के लिए कई महत्वपूर्ण समझौते किए हैं। भारत के पोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर में यूएई की कंपनियों द्वारा कई बिलियन डॉलर के नए निवेश पर सहमति बनी है। यूएई के राष्ट्रपति ने कहा कि वाइब्रेंट गुजरात समिट इकोनॉमिक डेवलपमेंट और इंवेस्टमेंट से जुड़ी जानकारियां और अनुभव साझा करने का ग्लोबल प्लेटफॉर्म बनी है।

भारत का बैंकिंग सिस्टम दुनिया के सबसे मजबूत बैंकिंग सिस्टम में से एक है। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के तहत पीएम मोदी की अगुवाई में केंद्र सरकार ने 40 हजार से ज्यादा ऐसे नियम-कानून खत्म किए जो उद्योग-व्यापार के लिए गैर जरूरी थे। जीएसटी ने भारत में टैक्स के अनावश्यक जाल को खत्म किया है। हाल ही में भारत ने 3 एफटीए साइन किए हैं ताकि ग्लोबल बिजनेस के लिए भारत को और भी आकर्षक गंतव्य बनाया जा सके। आज भारत इंफ्रास्ट्रक्चर पर रिकार्ड निवेश कर रहा है। ग्रीन एनर्जी और ऊर्जा के दूसरे स्रोतों पर भारत तेज गति से काम कर रहा है। भारत में रिन्यूवल एनर्जी की क्षमता तीन गुना बढ़ी है और सोलर एनर्जी की क्षमता में 20 गुना की बढ़ोतरी हुई है। डिजिटल इंडिया मिशन ने भारत में लाइफ और बिजनेस दोनों को ट्रांसफॉर्म कर दिया है। 10 वर्षों में सस्ते फोन और डेटा से डिजिटल इन्क्लूजन की नई क्रांति आई है। हर गांव तक ऑप्टिकल फाइबर पहुंचाने का अभियान, 5जी का तेजी से विस्तार आम भारतीयों का जीवन बदल रहा है।

पीएम मोदी ने कहा कि तेजी से बदलते हुए वर्ल्ड ऑर्डर में भारत ‘विश्व मित्र’ की भूमिका में आगे बढ़ रहा है। भारत ने विश्व को यह भरोसा दिया है कि हम साझा लक्ष्य तय कर उसे प्राप्त कर सकते हैं। भारत, दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। 10 साल पहले भारत 11वें स्थान पर था। n

 

आज दुनिया की हर प्रमुख रेटिंग एजेंसी का अनुमान है कि भारत अगले कुछ वर्षों में दुनिया की टॉप थ्री इकोनॉमी में आ जाएगा। एक ऐसे समय में जब विश्व अनेक अनिश्चितताओं से घिरा हुआ है, तब भारत, दुनिया में विश्वास की एक नई किरण बनकर उभरा है।

- नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री

 

पीएम मोदी के विजन की व्यापारिक हस्तियों ने की सराहना

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश की अर्थव्यवस्था को विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने की दिशा में तेजी से काम कर रहे हैं। इसके लिए व्यापार जगत का साथ बहुत जरूरी है लिहाजा पीएम मोदी व्यापार और व्यवसाय को हर स्तर पर देश में मजबूत करने में जुटे हैं। प्रधानमंत्री के इस विजन को देश के बड़े उद्योगपतियों के साथ-साथ विदेशी उद्योगपतियों ने भी सराहा है। व्यापार में गैर जरूरी बाधा बन रहे हजारों नियम और शर्तों को खत्म कर व्यापार करना सहज बनाया। वाइब्रेंट गुजरात सम्मेलन के दौरान आर्सेलरमित्तल के अध्यक्ष लक्ष्मी मित्तल, जापान के सुजुकी मोटर कॉरपोरेशन के अध्यक्ष तोशीहिरो, रिलायंस समूह के मुकेश अंबानी, यूएसए के माइक्रोन टेक्नोलॉजी के सीईओ संजय मेहरोत्रा, अडानी समूह के गौतम अडानी, टाटा संस लिमिटेड के अध्यक्ष एन. चन्द्रशेखरन, दक्षिण कोरिया की कंपनी सिमटेक के सीईओ जेफरी चुन सहित अन्य उद्योगपतियों ने पीएम मोदी के विजन की सराहना की। उद्योगपतियों का स्पष्ट मानना है कि पिछले 10 वर्ष देश के लिए अविश्वसनीय रहे हैं। देश के स्टार्टअप इकोसिस्टम, छोटे उद्यमियों और ई कॉमर्स के उदय की सराहना की। स्टार्टअप को फलने-फूलने के लिए इकोसिस्टम की सुविधा प्रदान करने के लिए उद्योगपतियों ने प्रधानमंत्री की सराहना की। रिलायंस समूह के प्रमुख मुकेश अंबानी ने भारत में हो रहे सकारात्मक बदलाव की वजह प्रधानमंत्री मोदी को बताया। उन्होंने यह भी कहा कि नरेंद्र मोदी भारत के इतिहास में सबसे सफल प्रधानमंत्री हैं।

 

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राष्ट्र - वंदे भारत के चार वर्ष

 

विकसित होते भारत को

गति देती आधुनिक रेल

 

भारत विकसित राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर है, इसके लिए आर्थिक विकास की गति बढ़ाई जा रही है। इसमें रेलवे की अहम भूमिका को देखते हुए पिछले एक दशक में रिकार्ड निवेश किया गया है। आधुनिक ट्रेन, सुरक्षित पटरी, सुविधायुक्त स्टेशन को तकनीक से जोड़कर रेलवे को आधुनिक बनाया जा रहा है। इसी कड़ी में 15 फरवरी 2019 को देश की पहली सेमी हाई स्पीड ट्रेन ‘वंदे भारत’ की शुरुआत की गई। करीब चार वर्ष में ही देश के करीब-करीब सभी राज्यों को वंदे भारत की कनेक्टिविटी मिल चुकी है। 400 ‘वंदे भारत’ ट्रेन चलाने के संकल्प को मजबूती दे रहा राष्ट्र…...

 

देश की आध्यात्मिक नगरी हो, आर्थिक नगरी हो या पौराणिक शहर हो, सभी शहरों में वंदे भारत कनेक्विटी सुनिश्चित की जा रही है ताकि व्यापार में वृद्धि के साथ-साथ पर्यटन, विरासत और संस्कृति को भी संजोया जा सके। 15 फरवरी 2019 को प्रधानमंत्री मोदी ने नई दिल्ली से वाराणसी के बीच पहली वंदे भारत ट्रेन की शुरुआत की थी। स्वदेश निर्मित वंदे भारत ट्रेन देश की पहली सेमी हाई स्पीड ट्रेन है जो 160 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही है। 30 दिसंबर 2023 तक 40 जोड़ी ‘वंदे भारत’ ट्रेन रेल की पटरियों पर दौड़ रही है। वंदे भारत अभी तक 250 से ज्यादा जिलों तक अपनी पहुंच बना चुकी है। 9 जनवरी 2024 तक ‘वंदे भारत’ ट्रेन ने 16,521 ट्रिप लगाए जिसमें 1.61 करोड़ से ज्यादा लोगों ने यात्रा की।

 विकसित होते भारत के लिए रेलवे स्टेशनों का आधुनिकीकरण जरूरी है। इसी सोच को ध्यान में रखते हुए भारत में पहली बार रेलवे स्टेशनों के विकास और आधुनिकीकरण का अभियान शुरू किया गया है। आज देश में रेल यात्रियों की सुविधा के लिए रिकार्ड संख्या में फुट ओवर ब्रिज, लिफ्ट और एस्केलेटर का निर्माण किया जा रहा है। देश भर में 1,309 स्टेशनों के पुनर्विकास के लिए अमृत भारत स्टेशन योजना शुरू की गई है। देश के 500 से ज्यादा बड़े रेलवे स्टेशनों के पुनर्विकास का काम शुरू भी कर दिया गया है। 24,470 करोड़ रुपये से अधिक की लागत से इन स्टेशनों का पुनर्विकास किया जा रहा है जिन्हें अमृत भारत स्टेशन का नाम दिया गया है।

पीएम मोदी कहते हैं, “मौजूदा सदी का तीसरा दशक भारतीय रेल के बदलाव का दशक है। मुझे छोटे-छोटे सपने देखने और धीमे चलने की आदत नहीं है। मैं आज की युवा पीढ़ी को गारंटी देना चाहता हूं कि इस दशक के अंत तक, आप भारत की ट्रेनों को दुनिया में किसी भी देश से पीछे नहीं पाएंगे।” भारतीय रेल सुरक्षा, स्वच्छता, सुविधा, समन्वय, संवेदनशीलता और क्षमता में दुनिया में नया मुकाम हासिल करेगी। भारतीय रेल 100 फीसदी विद्युतीकरण के लक्ष्य हासिल करने के समीप है। नमो भारत, अमृत भारत और वंदे भारत की त्रिवेणी इस दशक के अंत तक भारतीय रेल के आधुनिकीकरण का प्रतीक बनेगी।

देश के पूर्वी हिस्से सहित संपूर्ण भारत में रेलवे लाइनों के दोहरीकरण, गेज परिवर्तन और नए मार्गों पर तेजी से काम चल रहा है। जल्द ही पूर्वोत्तर के सभी राज्यों की राजधानियों को रेलवे नेटवर्क से जोड़ दिया जाएगा। 2014 से पहले देश में 6 हजार से भी कम रेलवे ओवरब्रिज और अंडरब्रिज थे लेकिन अब इसकी संख्या 10,000 से अधिक हो गई है। बड़ी लाइनों पर मानव रहित रेलवे क्रॉसिंग की संख्या अब शून्य हो गई है। जल्द ही 100 प्रतिशत रेल लाइन के विद्युतीकरण का काम पूरा कर लिया जाएगा। वर्ष 2030 तक भारत, एक ऐसा देश होगा जिसका रेलवे नेटवर्क शुद्ध शून्य उत्सर्जन पर चलेगा। n

 

‘वंदे भारत’ ट्रेन की विशेषता

n  एग्जीक्यूटिव क्लास में घूमने वाली सीटों के साथ रिक्लाइनिंग एर्गोनोमिक सीटें और आरामदायक सीटें।

n  सभी कोच में सीसीटीवी, हर सीट के लिए मोबाइल चार्जिंग सॉकेट।

n  स्वचालित प्लग दरवाजे। प्रत्येक कोच में आपातकालीन खुलने योग्य खिड़कियां और अग्निशामक यंत्र। आपातकालीन अलार्म पुश बटन और टॉक बैक इकाईयां।

n  हॉट केस, वाटर कूलर, डीप फ्रीजर और हॉट वॉटर बॉयलर के प्रावधान के साथ पैंट्री।

n  वॉइस रिकॉर्डिंग सुविधा और क्रैश हार्डेंड मेमोरी के साथ ड्राइवर-गार्ड संचार।

n  रिमोर्ट मॉनिटरिंग के साथ कोच कंडीशन मॉनिटरिंग सिस्टम (सीसीएमएस) डिस्पले।

 

अमृत भारत ट्रेन

देश को दो अमृत भारत ट्रेन की सौगात मिली है। दरभंगा-अयोध्या-आनंद विहार टर्मिनल अमृत भारत एक्सप्रेस और मालदा टाउन-सर एम.विश्वेश्वरैया टर्मिनस (बेंगलुरु) अमृत भारत एक्सप्रेस की शुरुआत की गई है। यह ट्रेन रेल यात्रियों को सुंदर और आकर्षक डिजाइन वाली सीटें, सामान के बेहतर रैक, उपयुक्त मोबाइल होल्डर सहित मोबाइल चार्जिंग प्वाइंट, एलईडी लाइट सीसीटीवी, सार्वजनिक सूचना प्रणाली जैसी बेहतर सुविधाएं प्रदान करती है।

भारत गौरव ट्रेन

भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और गौरवशाली ऐतिहासिक स्थलों को प्रदर्शित करने के उद्देश्य से पर्यटक सर्किट ट्रेन शुरू की गई है। पहली भारत गौरव ट्रेन 14 जून 2022 को कुल 2,880 किमी की दूरी कवर करते हुए कोयंबटूर से मंत्रालयम और शिरडी तथा वापसी के लिए शुरू की गई।

रीजनल रैपिड ट्रेन ‘नमो भारत’

पहली रैपिड रेल सेवा ‘नमो भारत’ ट्रेन देशवासियों को समर्पित की गई। पीएम मोदी ने दिल्ली-गाजियाबाद-मेरठ आरआरटीएस गलियारे का शिलान्यास किया था। आरटीएस के मेरठ खंड का काम पूरा होने के बाद पीएम मोदी ने पहली रीजनल रैपिड ट्रेन का उद्घाटन किया। यह नए भारत के नए सफर और नए संकल्पों को परिभाषित कर रही है।

 

वंदे भारत, पहली सेमी-हाई स्पीड ट्रेन है जो मेड इन इंडिया है। वंदे भारत, पहली ऐसी ट्रेन है जो इतनी कॉम्पैक्ट और एफिशिएंट है। वंदे भारत, पहली ट्रेन है जो स्वदेशी सेफ्टी सिस्टम कवच के अनुकूल है।

- नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री

 

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राष्ट्र - विकसित भारत संकल्प यात्रा

 

देश की यात्रा बनी

विकसित भारत संकल्प यात्रा

 

विकसित भारत संकल्प यात्रा का सबसे बड़ा मकसद है कि कोई भी हकदार सरकारी योजनाओं के लाभ से छूटना नहीं चाहिए। कई बार जागरुकता की कमी से या दूसरे कारणों से कुछ लोग सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित रह जाते हैं। केंद्र सरकार ऐसे में वंचितों तक पहुंचना अपना दायित्व मानकर विकसित भारत संकल्प यात्रा की वैन गांव-गांव घुमा रही है। इसी कड़ी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 और 19 जनवरी को विकसित भारत संकल्प यात्रा के लाभार्थियों से की बातचीत...

 

पंजाब, गुरदासपुर के गुरविंदर सिंह बाजवा का मानना है कि विकसित भारत यात्रा का सबसे बड़ा लाभ यह है कि कृषि क्षेत्र में सर्वोत्तम संभावित लाभ पाने के लिए किसान छोटे समूहों में संगठित हो गए हैं। वह कहते हैं कि अब किसान को लग रहा है कि उसे उचित समर्थन मिलेगा। वहीं मिजोरम में आइजोल के शुयाया राल्ते 2017 से जैविक खेती कर रहे हैं। वह बताते हैं कि वह अपनी उपज को नई दिल्ली तक की विभिन्न कंपनियों को बेचने में समर्थ हैं। इससे उनकी आय में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। यह 20,000 रुपये से बढ़कर 1,50,000 रुपये हो गई है।

आंध्र प्रदेश के 102 साल पुराने सहकारी समूह के सदस्य नंदयाला के सईद ख्वाजा मुइहुद्दीन ने प्रधानमंत्री को बताया कि वर्तमान सरकार की पहल के बाद ही नाबार्ड ने समूह को कृषि बुनियादी ढांचा योजना के तहत भंडारण के लिए तीन करोड़ रुपये का ऋण दिया। इससे समूह को पांच गोदाम बनाने में मदद मिली। वहीं छत्तीसगढ़ के कांकेर की किसान परिवार की भूमिका भूआराया ने बताया कि उन्होंने वन धन योजना, उज्ज्वला गैस कनेक्शन, जल जीवन मिशन, मनरेगा कार्ड, राशन कार्ड और पीएम किसान सम्मान निधि सहित विभिन्न सरकारी योजनाओं का लाभ उठाया है।

विकसित भारत संकल्प यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरविंदर सिंह बाजवा, शुयाया राल्ते, सईद ख्वाजा मुइहुद्दीन और भूआराया सहित कई लाभार्थियों से बातचीत की। प्रतिनिधियों के साथ पूरे देश से हजारों विकसित भारत संकल्प यात्रा लाभार्थी इस कार्यक्रम में शामिल हुए। लाभार्थियों से बातचीत में पीएम मोदी ने कहा कि समाज में अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति तक सरकार खुद पहुंच रही है, उसे अपनी योजनाओं से जोड़ रही है। विकसित भारत संकल्प यात्रा सिर्फ सरकार की नहीं बल्कि देश के सपनों, संकल्पों और भरोसे की यात्रा बन चुकी है।

किसने सोचा था कि कभी सरकारी कर्मचारी और अधिकारी खुद गरीब के दरवाजे पर पहुंचकर पूछेंगे कि आपको सरकारी योजना का लाभ मिला या नहीं? लेकिन आज यह विकसित भारत संकल्प यात्रा के माध्यम से संभव हो पा रहा है। गरीब, किसान, महिला और युवाओं में छोटी-छोटी जरूरतों का संघर्ष देश में सबसे अधिक रहा है। केंद्र सरकार चाहती है कि वर्तमान और भावी पीढ़ियों को मुसीबत, कठिनाई नहीं झेलनी पड़े। प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं कि हम देश की एक बहुत बड़ी आबादी को रोजमर्रा की छोटी-छोटी जरूरतों के लिए होने वाले संघर्षों से बाहर निकालना चाहते हैं। इसलिए हम गरीब, महिला, किसान और युवाओं के भविष्य पर फोकस कर रहे हैं।

सरकारी योजनाओं की गारंटी के

लिए चलती रहेगी विकास की गाड़ी

विकसित भारत संकल्प यात्रा के 2 महीने पूरे हो चुके हैं। इस यात्रा में चलने वाला विकास रथ, विश्वास रथ है और अब इसे लोग गारंटी वाला रथ भी कह रहे हैं। यह विश्वास है कि कोई भी वंचित नहीं रहेगा और योजनाओं के लाभ से नहीं छूटेगा। इसलिए जिन गांवों में गारंटी वाली गाड़ी अभी नहीं पहुंची है, वहां अब इसका बेसब्री से इंतजार हो रहा है। पहले यह यात्रा 26 जनवरी तक चलने वाली थी लेकिन इसे इतना समथर्न मिला और मांग बढ़ी की गांव-गांव से लोग कह रहे हैं कि यह गाड़ी हमारे यहां आनी चाहिए। पीएम मोदी  को जब यह पता चला तो उन्होंने अधिकारियों से कहा कि अब 26 जनवरी तक नहीं, इसे थोड़ा आगे बढ़ाईये। लोगों को जरूरत है, लोगों की मांग है तो इसको पूरा करना होगा। ऐसे में विकास की गारंटी वाली यह गाड़ी आगे भी चलेगी।

शुरुआती 65 दिन में यात्रा से 15 करोड़ लोग जुड़े

विकसित भारत संकल्प यात्रा के शुरुआती 65 दिन में 15 करोड़ लोग जुड़ चुके हैं। देश की लगभग 70-80 प्रतिशत पंचायतों तक यह यात्रा पहुंच चुकी है। इस यात्रा के दौरान 4 करोड़ से ज्यादा लोगों का हेल्थ चेकअप और ढाई करोड़ लोगों की टीबी की जांच हुई है। जनजातीय क्षेत्रों में 50 लाख से ज्यादा लोगों की सिकल सेल एनीमिया की जांच के लिए स्क्रीनिंग हुई है। विकसित भारत संकल्प यात्रा में सैचुरेशन की अप्रोच ने सरकार को कितने ही वंचितों के दरवाजे तक पहुंचा दिया। इस यात्रा के दौरान, 50 लाख से ज्यादा आयुष्मान कार्ड दिए गए हैं। 50 लाख से ज्यादा लोगों ने बीमा योजनाओं के लिए आवेदन किया। पीएम किसान योजना से 33 लाख से ज्यादा लाभार्थी जोड़े गए। किसान क्रेडिट कार्ड से 25 लाख से ज्यादा नए लाभार्थी जोड़े गए। 22 लाख से ज्यादा नए लाभार्थियों ने मुफ्त गैस कनेक्शन के लिए आवेदन किया। 10 लाख से ज्यादा लोगों ने पीएम स्वनिधि का लाभ उठाने के लिए आवेदन दिया।

गरीबी से बाहर निकले करीब 25 करोड़ लोग

केंद्र सरकार के प्रयासों के कारण पिछले 9 वर्षों में करीब-करीब 25 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले हैं। भारत में गरीबी कभी कम हो सकती है यह कोई सोच भी नहीं सकता था लेकिन भारत के गरीबों ने यह कर दिखाया है। गरीबों को साधन और संसाधन मिले तो वो गरीबी को परास्त कर सकते हैं। पिछले 10 साल में केंद्र सरकार ने जिस तरह की पारदर्शी व्यवस्था बनाई, सच्चा प्रयास किया, जनभागीदारी को बढ़ावा दिया, उसने असंभव को भी संभव कर दिखाया है।

10 साल में 4 करोड़ से अधिक गरीब

परिवारों को मिला अपना पक्का घर

सरकार कैसे गरीबों के लिए काम कर रही है, इसे पीएम आवास योजना से भी समझा जा सकता है। पिछले 10 साल में 4 करोड़ से अधिक गरीब परिवारों को अपना पक्का घर मिला है। इनमें से 70 प्रतिशत से ज्यादा घरों की रजिस्ट्री महिलाओं के नाम हुई है। गरीबी से बाहर निकालने के साथ-साथ इस योजना से महिलाओं को सशक्त करने में भी मदद मिली है। ग्रामीण इलाकों में घरों का आकार भी बढ़ाया गया है। पहले घर कैसे बनेंगे इसमें सरकार दखल देती थी, अब लोग अपनी पसंद के घर बना रहे हैं। सरकार ने आवास योजनाओं के घरों का निर्माण भी तेज किया है। पहले जहां घर बनने में 300 से ज्यादा दिन लग जाते थे, वहीं अब पीएम आवास के तहत घरों के निर्माण में औसतन 100 दिन के करीब लगते हैं। अर्थात सरकार अब पहले से तीन गुना तेजी से घरों का निर्माण करा रही है और गरीबों को दे रही है। n

 

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व्यक्तित्व - राजकुमारी अमृत कौर

 

राजकुमारी अमृत कौर

एम्स की शिल्पकार

 

जन्म : 2 फरवरी 1889

मृत्यु : 6 फरवरी 1964

 

दिल्ली स्थित देश के सबसे प्रतिष्ठित चिकित्सीय संस्थान अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निर्माण में राजकुमारी अमृत कौर की भूमिका अविस्मरणीय है। स्वतंत्रता सेनानी, संविधान सभा की सदस्य, देश की पहली स्वास्थ्य मंत्री राजकुमारी अमृत कौर ने शिमला का अपना पैतृक मकान भी एम्स को दान कर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार आज देश में कई एम्स की स्थापना के साथ स्वास्थ्य ढांचे को मजबूती और आयुष्मान भारत जैसी कई योजनाओं को सफलतापूर्वक दे रही है गति…...

 

कपूरथला के राजा हरनाम सिंह की बेटी राजकुमारी अमृत कौर का जन्म 2 फरवरी 1889 को उत्तर प्रदेश के लखनऊ में हुआ था। इंग्लैंड के ऑक्सफोर्ड से उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। 1918 में भारत आने पर उन्होंने राजनीति में आने का मन बना लिया। उनके माता-पिता को यह रास नहीं आया लेकिन उन्होंने अपनी बेटी को कभी रोका नहीं। अमृत कौर के पिता कपूरथला के राजा थे और उनसे मिलने के लिए अक्सर बड़े-बड़े लोग आया करते थे। इन्हीं लोगों में एक गोपाल कृष्ण गोखले भी थे जो हरनाम सिंह के काफी करीबी थे। ऐसे में राजकुमारी अमृत कौर को गोखले से महात्मा गांधी के बारे में जानकारी मिली और वह बापू को खत लिखने लगीं। धीरे-धीरे भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ गईं। बाद के दिनों में वह महात्मा गांधी के सबसे करीबी लोगों में से एक रहीं।

महात्मा गांधी की कट्टर समर्थक होने के नाते उन्होंने ‘नमक आंदोलन’ और ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। दोनों बार उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। अमृत कौर ने गुलामी की जंजीरों में जकड़े देश में कुप्रथाओं के खिलाफ भी निर्णायक लड़ाई लड़ी थी। बच्चों को अधिक मजबूत और अनुशासित बनाने के लिए उन्होंने स्कूली खेलों की शुरुआत करने पर जोर दिया। बाद में उन्होंने नेशनल स्पोर्ट्स क्लब ऑफ इंडिया की स्थापना कर अपने इरादों को आकार देना शुरू किया। इतना ही नहीं उन्होंने पर्दा प्रथा, बाल विवाह और देवदासी जैसी कुप्रथाओं के खिलाफ आवाज बुलंद की थी। भारत में जब संविधान बनाने के लिए संविधान सभा का गठन हुआ तो उसमें भी राजकुमारी अमृत कौर ने एक सदस्य के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारत की आजादी के बाद उन्हें देश का पहला स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया। वह 10 साल तक इस पद पर रहीं। इस दौरान उन्होंने एम्स की स्थापना के लिए जी तोड़ प्रयास किया और न्यूजीलैंड, जर्मनी, अमेरिका जैसे कई देशों से वित्तीय सहायता प्राप्त कर देश की सेहत सुधारने का इंतजाम किया। उन्होंने शिमला में अपना पैतृक मकान मैनरविल भी एम्स को दान कर दिया। राजकुमारी अमृत कौर का 75 साल की उम्र में 6 फरवरी 1964 को निधन हो गया।

राजकुमारी अमृत कौर को दिल्ली एम्स का शिल्पकार माना जाता है लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना है कि देश के सभी राज्यों में एम्स खोले जाएं। इसी सपने को साकार करते हुए पिछले 10 वर्षों में 17 एम्स खोले गए हैं जिससे देश में एम्स की कुल संख्या 23 हो गई है। 26 नंवबर 2022 को संविधान दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजकुमारी अमृत कौर को याद किया था और कहा था कि राजकुमारी अमृत कौर जैसी कई महिला सदस्यों ने महिलाओं से जुड़े विषयों पर अहम योगदान दिया था। n

 

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हमारा ज्ञान गौरव

विश्व विरासत धरोहर नालंदा

 

बिहार के नालंदा महाविहार (नालंदा विश्वविद्यालय) पुरातात्विक स्थल को 2016 में यूनेस्को ने विश्व विरासत धरोहर घोषित किया। विश्व विरासत की मान्यता मिलना गर्व का विषय है क्योंकि इससे हमारी पौराणिक विरासत की वैश्विक पहचान को मजबूती मिलती है। घरेलू और अंतरराष्ट्रीय पर्यटन एवं रोजगार के अवसर बढ़ते हैं, स्‍थानीय अर्थव्यवस्था लाभांवित होती है। विश्व स्तरीय बुनियादी ढांचे का निर्माण होता है। यही वजह है कि जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान नालंदा की पृष्ठभूमि में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वैश्विक नेताओं का स्वागत अभिनंदन कर विश्व समुदाय को इससे कराया अवगत…...

 

n   नालंदा शिक्षा का एक प्राचीन स्थान था। यह चौथी शताब्दी में स्थापित दुनिया का सबसे पुराना विश्वविद्यालय था। यह जगह शिक्षा और चरित्र निर्माण के लिए प्रसिद्ध रहा।

n  लाल ईंटों से बने महाविहार को वास्तुशिल्प की उत्कृष्ट कृति माना जाता था। इस प्राचीन नालंदा महाविहार के खंडहर 14 हेक्टेयर के क्षेत्र में फैले हुए हैं।

n  भारतीय इतिहास, विरासत और सभ्यता का महत्वपूर्ण हिस्सा रहे नालंदा के कारण ही हमें पता चलता है कि यात्री चीन, कोरिया, जापान, तिब्बत, मंगोलिया, तुर्की, श्रीलंका और दक्षिण पूर्व एशिया से आए थे।

n  नालंदा विश्वविद्यालय में विद्वान चीन और थाईलैंड से आते थे। चीनी विद्वान ह्वेनसांग 7वीं शताब्दी में यहां अध्ययन के लिए आए थे। उन्‍होंने नालंदा विश्वविद्यालय के बारे में विस्तार से लिखा है।

n  भारत के विश्व धरोहर स्थलों की संख्या 42 (सांस्कृतिक-34, प्राकृतिक-7, मिश्रित-1) हो गई है, जिससे भारत यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में सर्वाधिक स्थलों की संख्या के मामले में छठे स्थान पर आ गया है।

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